Tuesday 11 May 2010

बदलाव

जीवन को सुधारने के लिए सिर्फ आर्थिक ढांचा बदल देने भर की जरुरत नहीं है, उसके लिए आदमी का सुधार करना होगा, व्यक्ति का सुधार करना होगा. वर्ना एक भरे - पूरे और वैभवशाली समाज में भी आज के से स्वस्थ और पाशविक वृतियों वाले व्यक्ति रहेंगे तो दुनियाँ ऐसी ही लगेगी जैसे एक खूबसूरत सजा-सजाया महल जिसमें कीड़े और राक्षस रहते हैं.
धर्म वीर भारती

Tuesday 4 May 2010

दुखांत ये नहीं होता .....

दुखांत यह नहीं होता कि रात की कटोरी को कोई जिन्दगी के शहद से भर न सके, और वास्तविकता के होंठ कभी उस शहद को चख ना सकें ....दुखांत यह होता है कि जब रात की कटोरी पर से चंद्रमाँ की कलई उतर जाये और उस कटोरी में पड़ी कल्पनाये कसैली हो जाये.

दुखांत ये नहीं होता की आपकी किस्मत से आपके साजन का नाम-पता ना पढ़ा जाये और आपकी उम्र की चिट्ठी सदा रुलती रहे. दुखांत यह होता है कि आप अपने प्रिये को अपनी उम्र कि सारी चिट्ठी लिख लें और आपके पास से आपके प्रिये का नाम पता खो जाये.

दुखांत यह नहीं होता कि जिन्दगी की लम्बी डगर पर समाज के बंधन अपने कांटे बिखेरते रहे..और आपके पैरो में से सारी उम्र लहू बहता रहे. दुखांत यह होता है कि आप लहू लुहान पैरो से एक ऐसी जगह पर खड़े हो जाये जिसके आगे कोई रास्ता आपको बुलावा न दे.

दुखांत यह नहीं होता कि आप अपने इश्क के ठिठुरते शरीर के लिए सारी उम्र गीतों के पैरहन सीते रहें. दुखांत यह होता है कि इन पैरहनो को सीने के लिए आपके विचारो का धागा चूक जाये और आपकी सुई (कलम) का छेद टूट जाये.

....अम्रिता प्रीतम

Sunday 2 May 2010

अंतर्द्वंद

सत-असत, पाप- पुन्य, न्याय-अन्याय, राग-विराग से युक्त जब दो भाव एक साथ उत्पन्न होते हैं तो मनुष्य विचार के आधार पर निर्णय नहीं कर पता कि किस पक्ष को स्वीकार करू अथवा किसका त्याग करूं ऐसी स्थिति में उस के भीतर 'हाँ-नहीं' में खींचतान चलती रहती है, वाही अंतर्द्वंद कहलाता है.