Sunday 25 December 2011

भारत से टकराने वाला मिटटी में मिल जाएगा..




हम  सबको  रक्षा करनी है,  लड़ते  हुए जवानों की;
और हमें रखवाली करनी, अन्न भरे खलिहानों की ;

तभी  योजनाओं  का  रथ,  आगे आगे  बढ़  पायेगा !
तभी मुक्ति-अभिमन्यु हमारा, विजयकेतु फहराएगा !

भूखे  हाथों  से  मशीन  का  पहिया नहीं चला करता ;
भूखे-प्यासे  हाथों  में हल,  बार-बार  उछला  करता ;

भूखे सैनिक के स्वर से, कब अरि का उर दहला करता !
भूखे  देशों  का  अम्बर  में  केतु  नहीं  मचला  करता !

हमको फसल  नहीं कटवानी,  सरहद  पर  इंसानों  की,
रक्त-वृष्टि   से  हमें  सृष्टि  सुलगानी  है  शैतानों  की  __

तभी  हमारी  सत्यकथा  को  सारा  जग  पढ़ पायेगा !
देश   हमारा  गौरव   के   सोपानों   पर  चढ़  पायेगा !

संगीनों  की  नोक,  कथाएं  कब लिखती अनुराग की ;
हिम शिखरों पर चला बहाने को अरि सरिता आग की ;

हम  पद्मिनियों  के बेटे  हैं,  आदत रण  के फाग  की !
अपनी धरती  पर उगती  है फसल हमेशा त्याग  की !

कफ़न बाँध हम घर से निकले, होड़ लगी बलिदानों की;
जन्मभूमि  हित  तन, मन, धन देने वाले दीवानों की ;

देखें कौन  खोलकर सीना,  भारत  से  भिड़  पायेगा !
हिमगिरी से टकराने वाला मिटटी  में मिल जाएगा !!

                       सरस्वतीकुमार  'दीपक'

india independence day art picture

Tuesday 13 December 2011

नवीन कल्पना करो






तुम  कल्पना  करो, नवीन  कल्पना करो !
                                तुम  कल्पना  करो !


अब घिस गयी समाज की तमाम नीतियां,
अब घिस गयी मनुष्य  की अतीत रीतियाँ,
है   दे   रहीं   चुनौतियाँ   तुम्हें    कुरीतियाँ,
निज  राष्ट्र  के  शरीर  के  सिंगार  के  लिए --

तुम  कल्पना  करो, नवीन  कल्पना करो !
                                तुम  कल्पना  करो !

जंजीर   टूटती    कभी    न    अश्रुधार   से,
दुख-दर्द    दूर    भागते    नहीं   दुलार   से,
हटती   न   दासता   पुकार   से,  गुहार  से,
इस  गंग-तीर   बैठ  आज  राष्ट्र  शक्ति  की --
तुम  कामना करो, किशोर, कामना करो !
                                  तुम कामना करो !

जो तुम  गए, स्वदेश  की जवानियाँ  गयी,
चित्तौड़   के  प्रताप   की   कहानियां  गयी,
आज़ाद   देश   रक्त  की   रवानियाँ   गयी,
अब सूर्य-चन्द्र की समृद्धि ऋषि-सिद्धि की --
तुम   याचना  करो,  दरिद्र,  याचना करो !
                                  तुम याचना करो !

जिसकी तरंग लोल हैं अशांत सिन्धु वह,
जो  काटता  घटा  प्रगाड़  वक्र !  इंदु  वह,
जो  मापता  समग्र  सृष्टि  दृष्टि-बिंदु  वह,
वह  है मनुष्य,  जो स्वदेश की व्यथा हरे,
तुम  यातना  हरो,  मनुष्य, यातना हरो !
                                 तुम यातना हरो !

तुम  प्रार्थना किये चले, नहीं दिशा हिली,
तुम साधना किये चले, नहीं निशा हिली,
इस  आर्त  दीन  देश  की न दुर्दशा हिली,
अब  अश्रु दान  छोड़  आज शीश दान से --
तुम  अर्चना करो, अमोध, अर्चना करो !
                                तुम अर्चना करो !

आकाश  है  स्वतंत्र,  है  स्वतंत्र  मेखला,
यह  श्रृंग  भी  स्वतंत्र ही खड़ा बना ढला,
है  जल  प्रपात   काटता  सदैव  श्रृंखला,
आनंद, शोक, जन्म और मृत्यु के लिए --
तुम योजना करो, स्वतंत्र योजना करो !
                               तुम योजना करो !


                             गोपाल सिंह नेपाली 


Wednesday 7 December 2011

जवानी जागा करती है

  


               युग  का  करने  निर्माण जवानी जागा करती है !
               करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !


सुख-वैभव के सपनों में जब जग सोता रहता है,
पापों  की  गठरी को  मानव जब ढोता रहता है !
अरमानों को पूरा करने  की खातिर जब मानव,
पथ  में  विपदाओं  के  कांटे-से  बोता  रहता  है ;
                तब  करने  को कल्याण, जवानी जागा करती है !
                करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !


जब धरती की मानवता का इतिहास बदलता है,
मानव के उर का चिर संचित विश्वास बदलता है !
जब  एक-एक  इंसान  बदल  जाता  है धरती का,
जब  ब्रहमचर्य  भी  लेकर के संन्यास बदलता है !

                तब करने  को  उत्थान,  जवानी जागा करती है !
                करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !

जब  परिवर्तन  हो  जाता  है,  संसारी  जीवन  का,
जब परिवर्तन हो जाता है, मानव के तन-मन का !
जब विकट रूप में, जीवन की यह स्वांसा चलती है,
जब  परिवर्तन हो जाता है जग के इस उपवन का !
               तब  बन  करके वरदान, जवानी जागा करती है !
               करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !

जब  कंस  और  रावण  से  अत्याचारी होते हैं,
दुर्योधन,  दुशासन  जैसे  व्याभिचारी  होते हैं !
अन्यायों से उत्पीडित जनता जब चिल्लाती है,
शिशुपाल सरीखे उच्छ्रंखल अधिकारी होते हैं !
               तब बन करके भगवान्,  जवानी जागा करती है !
               करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !
 
जब गजनी के आक्रमणों का आतंक समाया हो,
जब  सोमनाथ  के मंदिर ने सम्मान लुटाया हो !
जब  दुष्ट  मुहम्मद गौरी से जयचंद मिलें जाकर,
जब चिता जलाकर सतियों ने शमशान रचाया हो !
              तब  बन  करके चौहान,  जवानी जागा करती है !
              करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !

                                                                         कृष्ण मित्र