Saturday, 13 February 2010

मन का झुकाव

कब कहा और कैसे हम अपने मन को हार बैठते है, यह खुद हमे नही पता चलता. मालूम तब होता है जब जिसके कदमो पर हमने अपना सिर रख्खा हो और वह झटके से अपने कदम घसीट ले. उस वक्त हमारी नींद टूटती है और तब हम जा कर देखते है कि अरे हमारा सिर तो किसी के कदमो पर रख्खा हुआ था और उसके सहारे हम आराम से सोते हुये सपना देख रहे थे कि हमारा सिर कहीं झुका ही नही.

7 comments:

  1. मन ना हुआ जुआ सट्टा हो गया ,खेलो
    जीतेंगे तो जीतेंगे नही तो हारेंगे तो पक्का ही .
    जीवन को ईश्वर का दिया अनमोल तौफा ना मान कर
    खेल या खिलौना मानोगे तो यही होगा .
    और हर किसी पर मन आ कैसे जाये?
    खूब ठोक बजा कर देखा तक नही , सिर उठा कर कदमो में रख दिया ?
    ये हमारा सिर है ,'मुखिया' 'हैड'
    शरीर को ही नही जीवन को संचालित .करता है ,न केवल अपने
    इस से तो परिवार,समाज ,दुनिया संचालित करता है .
    उठा कर जीए नही ,कदमो में रख कर सो गये
    ,तो ठोकर मार कर जाने का दुसाहस ओ कोई भी करेगा ना ?
    काश मन और मस्तिष्क को स्वयम सम्मान देना सीखे होते .
    ऐसा ना सोचो ,ना लिखा करो,सम्वेदनशील ,भावुक होने का अर्थ आत्म-सम्मान को
    किसी के कदमो में रखना नही होता,
    ऐसे विचार आप लोगों के दिमाग में आ कैसे जाते हैं अनामिका जी !
    अच्छा लिखती हैं ,बेशक किन्तु ........

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  2. इंदू जी आपकी टिप्पणी मिली...अच्छा लगा...लेकिन लगता है आपने मेरा ब्लोग ध्यान से नही देखा...मैने सबसे उपर यही लिखा है कि...

    "हमारे जाने - माने मश-हूर लेखको के लेखन से एकत्र की कुछ अभिव्यक्तिया जो मैं यहाँ समय समय पर लिखने की कोशिश कर्रूँगी. प्रार्थना है कि सभी पढने वाले इन्हें पढ़ कर अपनी टिप्पणियों द्वारा अपना योगदान दे अनुग्रहीत करे .."

    तो अब मै समजती हू कि आपको यह स्पष्ट हो गया होगा कि ये मै नही लिख रही...सिर्फ मशहूर लेखको की कुछ गिनी चुनी अभिव्यक्तिया जो कयी बार अच्छी लगती है उन्हे याहा आप सब में बांटने का प्रयास करती हू.
    और ये अभिव्यक्ती भी श्री धरम वीर भारती के एक उपन्यास की लाइन्स में से ली गयी है.
    सादर

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  3. बहुत प्यारा..और बहुत अच्छी शुरुआत है..अच्छा लगेगा ये सब पढ्कर..सुन्दर खयाल..

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  4. Maaf kijiyga kai dino busy hone ke kaaran blog par nahi aa skaa

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  5. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  6. बहुत चुन कर पंक्तियाँ छांटीं हैं.....गुनाहों का देवता से ....

    बहुत अच्छा चयन...

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  7. बहुत बढ़िया शैली और दिल से लिखती हैं आप

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