Saturday 10 April 2010

नारी मन ...

कभी कभी नारी को जिस चीज के प्रती जितना आकर्षण होता है नारी उस से उतनी ही दूर भागती है. अगर कोई ,प्याला मुह से ना लगा कर दूर फैंक दे तो समझ लो वो बेहद प्यासा है. इतना प्यासा कि तृप्ती की कल्पना से भी घबराता है .
धरम वीर भारती

9 comments:

  1. bahut sundar

    bahut khub



    shekhar kumawat

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  2. शानदार विचार प्रस्तुत किया..आभार!

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  3. सतीश जी के ब्लॉग पर टिप्पणी देख कर इस ब्लॉग पर आया | दो पद नारी मन और व्यक्तित्व की पहिचान (धरम बीर भारती ) के पढ़े |ये वाक्यांश किस संधर्भ में लिखे होंगे या उनकी किस पुस्तक से उध्रत है यह भी लिख दिया होता क्योंकि सन्दर्भ बदलते ही वाक्य की मंशा भी बदल जाती है

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  4. मैं इस वाक्य से सहमत हूँ , नारी मन को धर्मवीर भारती ने बहुत अच्छा वर्णित किया है ! आपकी अभिव्यक्तियाँ स्पष्ट हैं ! शुभकामनाएं

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  5. ब्रिजमोहन जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इस ब्लोग पर आप आये. यह अभिव्याक्तीया नारी मन और व्यक्तित्व की पहचान धरम वीर भारती जी की 'गुनाहो का देवता' पुस्तक में से ली गयी हैं .

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  6. अनामिकाजी नारी के लिए मेरी दो पंक्ति

    नारी को ना समझो तुम नारी है कितनी कमज़ोर
    नारी से ही नर जन्मता नर की शक्ति उसमे जोड़

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