कभी कभी नारी को जिस चीज के प्रती जितना आकर्षण होता है नारी उस से उतनी ही दूर भागती है. अगर कोई ,प्याला मुह से ना लगा कर दूर फैंक दे तो समझ लो वो बेहद प्यासा है. इतना प्यासा कि तृप्ती की कल्पना से भी घबराता है .
धरम वीर भारती
Saturday, 10 April 2010
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YE TI SACHAI HAI
ReplyDeleteबहुत सटीक बात....
ReplyDeleteसुविचार
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeletebahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
शानदार विचार प्रस्तुत किया..आभार!
ReplyDeleteसतीश जी के ब्लॉग पर टिप्पणी देख कर इस ब्लॉग पर आया | दो पद नारी मन और व्यक्तित्व की पहिचान (धरम बीर भारती ) के पढ़े |ये वाक्यांश किस संधर्भ में लिखे होंगे या उनकी किस पुस्तक से उध्रत है यह भी लिख दिया होता क्योंकि सन्दर्भ बदलते ही वाक्य की मंशा भी बदल जाती है
ReplyDeleteमैं इस वाक्य से सहमत हूँ , नारी मन को धर्मवीर भारती ने बहुत अच्छा वर्णित किया है ! आपकी अभिव्यक्तियाँ स्पष्ट हैं ! शुभकामनाएं
ReplyDeleteब्रिजमोहन जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इस ब्लोग पर आप आये. यह अभिव्याक्तीया नारी मन और व्यक्तित्व की पहचान धरम वीर भारती जी की 'गुनाहो का देवता' पुस्तक में से ली गयी हैं .
ReplyDeleteअनामिकाजी नारी के लिए मेरी दो पंक्ति
ReplyDeleteनारी को ना समझो तुम नारी है कितनी कमज़ोर
नारी से ही नर जन्मता नर की शक्ति उसमे जोड़