कविता से क्या मिलता है ?
एक काल्पनिक प्रशंसनीय जीवन
जो दूसरो की दया पर अपना अस्तित्व रखता है ...!
........जय शंकर प्रसाद (नाटक स्कंदगुप्त )
Friday, 16 April 2010
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हमारे जाने - माने मश-हूर लेखको के लेखन से एकत्र की कुछ अभिव्यक्तिया जो मैं यहाँ समय समय पर लिखने की कोशिश कर्रूँगी. प्रार्थना है कि सभी पढने वाले इन्हें पढ़ कर अपनी टिप्पणियों द्वारा अपना योगदान दे अनुग्रहीत करे ...
bahut sahi kaha sir...
ReplyDeletehttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
oh sorry mam....
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने.....
ReplyDeleteRegards.....
अच्छी नहीं लगी पर सची बात......
ReplyDeleteबिलकुल ठीक ही है हमारे जीवन की तरह ...
ReplyDeleteकवितायेँ कल्पना ही तो होती हैं ...
ReplyDeleteमगर कल्पनाएँ इतनी अवास्तविक भी नहीं होती ...
कही किसी की कोई सच्चाई तो जुडी होती ही होगी ...!!
प्रसाद जी के संवाद पर टिप्पणी ? यह उनकी आपबीती है । आपने जीवन्त कर दिया - आत्मबोध रचनाकारों का ।
ReplyDeleteअरुणेश मिश्र जी से सहमत ..
ReplyDeleteहर इंसान की सोच एक जैसी नहीं होती!
ReplyDeletekya baat hai didi ky akeh diya aapne
ReplyDeletesahmt nahi hun lakho dilon me jo cha jate hain unka kya ??????????????????????????????????????????????????
ReplyDeleteकविता से कविता लिखने वाले को क्या मिलता है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है।
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