Tuesday, 20 July 2010
इकरार का फूल
तुम्हारे इकरार को फूल की तरह नहीं पकड़ा था, अपनी मुट्ठी में भींच लिया था. वह कई बरस मेरी मुट्ठी में खिला रहा. पर मांस की हथेली मांस की होती है, यह मिटटी की तरह हमेशा जवान नहीं रहती. इस पर समय की सलवटें पड़ती हैं और जब यह बंजर होने लगती है तो इसमें उगा हर पत्ता मुरझा जाता है. तुम्हारे इकरार का फूल भी मुरझा गया............अमृता प्रीतम
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बहुत सुंदर जी
ReplyDeleteवाह, बड़ी सुन्दर अभिव्यक्ति ढूढ़ कर लायी हैं।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअति उत्तम अभिव्यक्ति।
ReplyDelete.
ReplyDeleteवह कई बरस मेरी मुट्ठी में खिला रहा. पर मांस की हथेली मांस की होती है, ....
beautiful expression !
अमृता प्रितम जी की सुंदर पंक्तियां पढ कर दिल को सुकून मिला!... धन्यवाद अनामिका!
ReplyDeleteआपका यह ब्लॉग सच में मोतियों का संग्रह है आपका बहुत धन्यवाद इस तरह के नूतन प्रयोग के लिए महान लेखकों के विचार हर कालखंड में अपना प्रभाव छोड़ जाते हैं
ReplyDeleteaj pehli baar apka ye wala blog padha...kaafi acha sangrah kiya hai apne...bahut acha laga.
ReplyDeletewah.bemisaal.
ReplyDeleteAnamika ji ek dhaga aur itne phool
ReplyDeletewaah..!
ReplyDeleteAnamika ji bahut khoobsurat phool chun kar laayin hain aap..
hriday se dhnywaad aapka..
Amrita Pritam Ji bhalaa kise nahi bhayengi ...
Sundar ati sundar...
अमृता प्रीतम की ये पंक्तियाँ पढ़वाने के लिए आभार।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
thanks for sharing!
ReplyDeletehridaysparshi panktiyan!