Tuesday, 20 July 2010

इकरार का फूल

तुम्हारे इकरार को फूल की तरह नहीं पकड़ा था, अपनी मुट्ठी में भींच लिया था. वह कई बरस मेरी मुट्ठी में खिला रहा. पर मांस की हथेली मांस की होती है, यह मिटटी की तरह हमेशा जवान नहीं रहती. इस पर समय की सलवटें पड़ती हैं और जब यह बंजर होने लगती है तो इसमें उगा हर पत्ता मुरझा जाता है. तुम्हारे इकरार का फूल भी मुरझा गया............अमृता प्रीतम

13 comments:

  1. वाह, बड़ी सुन्दर अभिव्यक्ति ढूढ़ कर लायी हैं।

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  2. अति उत्तम अभिव्यक्ति।

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  3. .
    वह कई बरस मेरी मुट्ठी में खिला रहा. पर मांस की हथेली मांस की होती है, ....

    beautiful expression !

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  4. अमृता प्रितम जी की सुंदर पंक्तियां पढ कर दिल को सुकून मिला!... धन्यवाद अनामिका!

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  5. आपका यह ब्लॉग सच में मोतियों का संग्रह है आपका बहुत धन्यवाद इस तरह के नूतन प्रयोग के लिए महान लेखकों के विचार हर कालखंड में अपना प्रभाव छोड़ जाते हैं

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  6. aj pehli baar apka ye wala blog padha...kaafi acha sangrah kiya hai apne...bahut acha laga.

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  7. Anamika ji ek dhaga aur itne phool

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  8. waah..!
    Anamika ji bahut khoobsurat phool chun kar laayin hain aap..
    hriday se dhnywaad aapka..
    Amrita Pritam Ji bhalaa kise nahi bhayengi ...
    Sundar ati sundar...

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  9. अमृता प्रीतम की ये पंक्तियाँ पढ़वाने के लिए आभार।
    घुघूती बासूती

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