Monday, 15 August 2011

आया फिर झूमता 15 अगस्त





आया फिर झूमता 15  अगस्त 

ऋतुओं की बाहों में गुनगुनी हवाएं 
रंगने लगीं मोरपंखी चुनरी दिशाएँ 
धूप सोये किशमिशी महुआ के गाँव में,
सोंधापन लिपट गया बरखा के पाँव में  !

                होंसले तिमिर के आज हुए ध्वस्त 
                आया फिर झूमता 15 अगस्त !

उन्नावी उगे पुखराजी आँखों में 
छंद बुने तितली ने केसर की पांखों में 
उग आयीं मेंड़ों पर अलसाई बाहें
कजरारी कोयलिया ग़ज़ल गीत गाएँ !

                संबोधन भावों के हुए अलमस्त 
                आया फिर झूमता 15 अगस्त !

हंसी लगे मुक्तक सी बहती बयार की 
सपनों में झांक गयी गंध एक प्यार की 
सूरज क्यों बादल का कुमकुमी निबंध 
गीत गीत भोर हुआ किरण हुई छंद !

               कुंठा को आशा ने फिर दी शिकस्त 
               आया फिर झूमता 15 अगस्त !

                                                     सुरेश नीरव

7 comments:

  1. काश, कुण्ठा को शिकस्त मिले।

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  2. बहुत सुन्दर किन्तु रामराज्य लायक ! आज की परिस्थितिया इस स्वतंत्रता के दिन में भी भ्रष्ट है ! आप को स्वतंत्रत दिवस की बधाई !

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  3. कुंठा को आशा ने फिर दी शिकस्त

    एक सुंदर प्रेरक और सार्थक प्रस्तुति. आभार. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...
    सादर,
    डोरोथी.

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  4. सार्थक रचना!
    शुभकामनायें!

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  5. आपको भी स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनाएं।

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  6. सुंदर शब्द संयोजन और भावनाओं की उन्मुक्त उड़ान भरती इस सुंदर देशभक्तिपूर्ण रचना के लिए बधाई !

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