आया फिर झूमता 15 अगस्त
ऋतुओं की बाहों में गुनगुनी हवाएं
रंगने लगीं मोरपंखी चुनरी दिशाएँ
धूप सोये किशमिशी महुआ के गाँव में,
सोंधापन लिपट गया बरखा के पाँव में !
होंसले तिमिर के आज हुए ध्वस्त
आया फिर झूमता 15 अगस्त !
उन्नावी उगे पुखराजी आँखों में
छंद बुने तितली ने केसर की पांखों में
उग आयीं मेंड़ों पर अलसाई बाहें
कजरारी कोयलिया ग़ज़ल गीत गाएँ !
संबोधन भावों के हुए अलमस्त
आया फिर झूमता 15 अगस्त !
हंसी लगे मुक्तक सी बहती बयार की
सपनों में झांक गयी गंध एक प्यार की
सूरज क्यों बादल का कुमकुमी निबंध
गीत गीत भोर हुआ किरण हुई छंद !
कुंठा को आशा ने फिर दी शिकस्त
आया फिर झूमता 15 अगस्त !
सुरेश नीरव
काश, कुण्ठा को शिकस्त मिले।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर किन्तु रामराज्य लायक ! आज की परिस्थितिया इस स्वतंत्रता के दिन में भी भ्रष्ट है ! आप को स्वतंत्रत दिवस की बधाई !
ReplyDeleteकुंठा को आशा ने फिर दी शिकस्त
ReplyDeleteएक सुंदर प्रेरक और सार्थक प्रस्तुति. आभार. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...
सादर,
डोरोथी.
सार्थक रचना!
ReplyDeleteशुभकामनायें!
achhi rachna - vande matram
ReplyDeleteआपको भी स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनाएं।
ReplyDeleteसुंदर शब्द संयोजन और भावनाओं की उन्मुक्त उड़ान भरती इस सुंदर देशभक्तिपूर्ण रचना के लिए बधाई !
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