साथियो नमस्कार !
बहुत दिनों बाद इस ब्लॉग को फिर से शुरू करने की कोशिश जारी है......अब से मैं भिन्न भिन्न कवियों के कुछ चुने हुए गीत समय समय पर प्रस्तुत करुँगी...आशा है आप अपना सानिध्य बनाये रखेंगे....
तो चलिए सबसे पहले आज प्रस्तुत है हरिवंशराय 'बच्चन' जी की कविता....'अग्निपथ'
'अग्निपथ'
अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ !
वृक्ष हों भले खड़े
हों घने हों बड़े
एक पत्र छाहं भी
मांग मत ! मांग मत ! मांग मत !
तू न थकेगा कभी
तू न थमेगा कभी
तू न मुड़ेगा कभी
कर शपथ ! कर शपथ ! कर शपथ !
यह महान दृश्य है
चल रहा मनुष्य है
अश्रु - स्वेद- रक्त से
लथ - पथ ! लथ - पथ ! लथ - पथ !
अग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ !
मेरी फ़ेवरिट कविता पोस्ट करने के लिए आभार!
ReplyDeleteपसंदीदा कविता पढ़वाने का आभार.....
ReplyDeleteस्वागत है पुनर्शुरुवात पर!!
अच्छी प्रस्तुति ..
ReplyDeleteमानव को मुसीबत में भी रास्ता चलाना सिखाता यह गीत कालजयी है ! सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार !
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति है!
ReplyDeleteरक्षाबन्धन के पुनीत पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
प्यारी रचना है बहुत ... कविता पढ़वाने का आभार ...
ReplyDeleteइतने कम शब्द कितना गहरा प्रभाव छोड़ते हैं।
ReplyDeletekaljayi rachnaon ko padhna ek alag hi anand deta hai. krupya is shuruaat ko band na karen.
ReplyDeleteप्रभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteZabardast,kaljayi rachana hai ye!
ReplyDeleteअच्छी कविता शेयर करने के लिए बहुत आभार!
ReplyDeleteशेयर करने के लिए बहुत आभार!
ReplyDeleteBHAUT ACHI MAN KO EK NAHI ASHA DETI HAI . KI YE JEEVAN KI RAHA KISI AGNI KE SAMAN HAI LAKIN CHALNA TERA KAAM HAI ESLIYE TU CHALTA JAYEGA TO EK DEEN APNI MNANJIL KO PA JAYEGA
ReplyDeleteBHAUT ACHI MAN KO EK NAHI ASHA DETI HAI . KI YE JEEVAN KI RAHA KISI AGNI KE SAMAN HAI LAKIN CHALNA TERA KAAM HAI ESLIYE TU CHALTA JAYEGA TO EK DEEN APNI MNANJIL KO PA JAYEGA
ReplyDeletebhaut achi kavita hai ye ,, man ko ek shanti milti hai .......
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