ओ देश के मेरे जवान
चंद्रमा ओझल न हो जाए
सूर्य ठंडा जल न हो जाए,
इसलिए ओ देश के मेरे जवान
आज तो सिर पर उठा ले आसमान
राह तेरी देखती हैं आंधियां
बिजलियाँ तेरे पगों में खेलतीं,
ये भुजाएं सिन्धु मथती हैं सदा
वार कितने ही समय के झेलतीं !
वीरता वह याद हो आये,
शत्रुता बर्बाद हो जाए,
इसलिए ओ देश के मेरे जवान
फिर उड़ा संसार पर अपने विमान
आग की जंजीर में आज़ाद हो..
तू चिता में मुस्कराता फूल है
फूल है तो शीश पर चढ़, अन्यथा -
पाँव के नीचे धरा की धुल है.
मृत्यु भी अभिमान बन जाए
जन्म भी वरदान बन जाए
इसलिए ओ देश के मेरे जवान
तीर बनकर फोड़ दे काला निशान .
जीतकर सौन्दर्य मन का विश्व में,
साथ ही तन की विजय भी चाहिए,
गूंजता है सत्य यह इतिहास का
जन्म लेने को प्रलय भी चाहिए.
सांस हर तूफ़ान हो जाए,
देश आलिशान हो जाए,
इसलिए ओ देश के मेरे जवान
आज फिर बन जा हिमालय सा महान .
एक होकर भी अकेला तू नहीं,
साथ तेरे प्रेम ओ विश्वास है,
तू बहुत कोमल कमल-सा है, मगर ..
वज्र जैसा वक्ष तेरे पास है.
खेत ओ खलिहान भर जाएँ,
देह को बलवान कर जाएँ,
इसलिए ओ देश के मेरे जवान
जाग, बन मजदूर मेहनतकश किशान.
मधुर शास्त्री
कविता तो बहुत सुन्दर है पर चित्र लिट्टे के सैनिकों का है।
ReplyDeleteयह नया रूप अच्छा लगा ....शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteचित्र बदलिए ...
भावमयी रचना अच्छी लगी , बधाई
ReplyDeleteसामयिक कविता है। युवा जोश में तो है,मगर देखना यह होगा कि समय आने पर यह जोश "होश" में तब्दील होता है या नहीं।
ReplyDeleteबिना बुलाए आया हूं। शायद स्वागत न हो ... फिर भी ...
ReplyDeleteकविता बहुत अच्छी लगी। सामयिक भी।
सभी सुधि पाठकों को आभार, चित्र बदल दिया है.
ReplyDeleteप्रवीण जी और सतीश का शुक्रिया इस सुझाव के लिए.और मनोज जी ऐसा कैसे सोच लिया कि आपका स्वागत नहीं होगा ? आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहता है.
तू बहुत कोमल कमल-सा है, मगर ..
ReplyDeleteवज्र जैसा वक्ष तेरे पास है.
sunder abhivyakti...
एक होकर भी अकेला तू नहीं,
ReplyDeleteसाथ तेरे प्रेम ओ विश्वास है,
तू बहुत कोमल कमल-सा है, मगर ..
वज्र जैसा वक्ष तेरे पास है.
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ हैं अनामिका जी ! इतनी जोशपूर्ण एवं प्रेरक रचना के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ! आज की रचना बहुत प्रासंगिक एवं सामयिक है ! पढ़ कर आनंद आ गया !
एक होकर भी अकेला तू नहीं,
ReplyDeleteसाथ तेरे प्रेम ओ विश्वास है,
तू बहुत कोमल कमल-सा है, मगर ..
वज्र जैसा वक्ष तेरे पास है.........बहुत ही खूबसूरत भाव मयी पंक्तियाँ ....अभार