वतन की आबरू खतरे में है, होशियार हो जाओ,
हमारे इम्तहां का वक्त है, तैयार हो जाओ !
हमारी सरहदों पर खून बहता है, जवानों का,
हुआ जाता है दिल छलनी हिमालय की चट्टानों का !
उठो रुख फेर दो दुश्मन की तोपों के दहानों का,
वतन की सरहदों पर आहिनी दीवार हो जाओ !
वह जिनको सादगी में हमने आँखों पर बिठाया था,
वह जिनको भाई कहकर हमने सीने से लगाया था !
वह जिनकी गर्दनों में हार बाहों का पहनाया था,
अब उनकी गर्दनों के वास्ते तलवार हो जाओ !
न हम इस वक्त हिन्दू हैं, न मुस्लिम हैं, न ईसाई,
अगर कुछ हैं तो हैं इस देश, इस धरती के शैदाई !
इसीको जिन्दगी देंगे, इसी से जिन्दगी पायी,
लहू के रंग से लिखा हुआ इकरार हो जाओ !
खबर रखना, कोई गद्दार साज़िश कर नहीं पाए,
नज़र रखना, कोई जालिम तिजोरी भर नहीं पाए,
हमारी कौम पर तारीख तोहमत धर नहीं पाए,
वतन-दुश्मन-दरिंदों के लिए ललकार हो जाओ !
साहिर लुधियानवी
ओजमयी प्रस्तुति!
ReplyDeleteफिर से वही हालात पैदा हो रहे हैं
ReplyDeleteहमारी कौम पर तारीख तोहमत धर नहीं पाए,
ReplyDeleteवतन-दुश्मन-दरिंदों के लिए ललकार हो जाओ !
........सोचने को विवश कर रही है
अद्भुत रचना चुन कर लाई हैं आप।
ReplyDeleteआभार इस प्रस्तुति के लिए।
वीररस का बेहतरीन उदाहरण। सरहद के शत्रुओं से मुकाबले में उतना वक्त नहीं लगता,पर हमारे अपने बीच बैठे वतन के दुश्मनों से मुकाबला कैसे किया जाए! वे लगातार हमारी नींव खोखला कर रहे हैं,अब भी न जगे,तो बहुत देर हो जाएगी।
ReplyDeletekyon soye they ab tak
ReplyDeletekhud se poochh lo
ab neend se jaag jaao
वतन की आबरू खतरे में है, होशियार हो जाओ,
हमारे इम्तहां का वक्त है, तैयार हो जाओ !
bahut saarthak aaj kee sthitiyon mein