Friday, 30 September 2011

मेरी चिट्ठी तेरे नाम ..




सुन ले 'बापू' ये पैगाम, मेरी चिट्ठी तेरे नाम !
चिट्ठी में सबसे पहले लिखता तुझको राम -राम !
                                       सुन ले 'बापू' ये पैगाम !

काला धन, काला व्यापार,
     रिश्वत का है गरम बाज़ार !
           सत्य - अहिंसा करे पुकार ,
                 टूट गया चरखे का तार !

तेरे अनशन सत्याग्रह के,
     बदल गए असली बरताव !
           एक नयी विद्या सीखी है,
                 जिसको कहते हैं 'घेराव' !

                          तेरी कठिन तपस्या का यह,
                          कैसा निकला है अंजाम !
                          सुन ले 'बापू' ये पैगाम !

प्रान्त - प्रान्त से टकराता है,
     भाषा पर भाषा की लात !
           मैं पंजाबी, तू बंगाली,
                कौन करे भारत की बात !

तेरी हिंदी के पावों में,
      अंग्रेजी ने बाँधी डोर !
             तेरी लकड़ी ठगों ने ठग ली ,
                   तेरी बकरी ले गए चोर !

                          साबरमती सिसकती तेरी,
                          तड़प रहा है सेवाग्राम !
                          सुन ले 'बापू' ये पैगाम !

'राम- राज्य' की तेरी कल्पना,
      उडी हवा में बनके कपूर !
            बच्चे पढना - लिखना  छोड़ ,
                   तोड़-फोड़ में हैं मगरूर !

नेता हो गए दल-बदलू,
      देश की पगड़ी रहे उछाल !
            तेरे पूत बिगड़ गए 'बापू' ,
                  दारुबंदी हुई हलाल !

                          तेरे राजघाट पर फिर भी,
                          फूल चढाते सुबहो - शाम !
                          सुन ले 'बापू' ये पैगाम !

                                                              भरत व्यास 

14 comments:

  1. अच्छी खरी-खरी सुनाई हैं -पर यहां सब चिकने घड़े हैं !
    ये सब तो बापू को भई बेच कर खाये डाल रहे हैं .

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  2. सार्थक रचना.......

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  3. तेरे राजघाट पर फिर भी,
    फूल चढाते सुबहो - शाम !
    सुन ले 'बापू' ये पैगाम ! bhaut hi sateek abhivaykti....

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  4. आज के हालात और राजनैतिक परिदृश्य का जीवंत चित्रण है ! बहुत प्रभावशाली रचना ! शुभकामनायें !

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  5. लाजवाब!
    आभार इस प्रस्तुति के लिए।

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  6. बापू के सपनों के भारत को लोगों ने क्या बना दिया है।

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  7. कडुवा लेकिन सत्य लिखा है ... आज तो अगर बापू होते तो वो भी कुछ नहीं कर पाते ...

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  8. कितना कड़वा सच है इस गीत में जब कि यह गीत आज से कई वर्ष पहले लिखा गया था... शुक्रिया इसे पढवाने का..

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  9. हमारे समय की यही हक़ीकत है। अधिक कष्टकर यह है कि भविष्य भी अनुकूल नहीं दिखता। हां,बापू के कारोबारियों के मज़े ज़रूर हैं।

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  10. तेरी लकड़ी ठगों ने ठग ली ,
    तेरी बकरी ले गए चोर !

    साबरमती सिसकती तेरी,
    तड़प रहा है सेवाग्राम !
    सुन ले 'बापू' ये पैगाम !
    Sach kahtee ho!

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  11. बहुत सटीक अभिव्यक्ति...

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  12. बापू के भारत की कल्पना के बिरोधी विकास को प्रदर्शित करते हुए उनके नाम की चिट्ठी अच्छी है। सुन्दर कविता। आभार।

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  13. नमस्कार,
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं |
    आप के लिए "दिवाली मुबारक" का एक सन्देश अलग तरीके से "टिप्स हिंदी में" ब्लॉग पर तिथि 26 अक्टूबर 2011 को सुबह के ठीक 8.00 बजे प्रकट होगा | इस पेज का टाइटल "आप सब को "टिप्स हिंदी में ब्लॉग की तरफ दीवाली के पावन अवसर पर शुभकामनाएं" होगा पर अपना सन्देश पाने के लिए आप के लिए एक बटन दिखाई देगा | आप उस बटन पर कलिक करेंगे तो आपके लिए सन्देश उभरेगा | आपसे गुजारिश है कि आप इस बधाई सन्देश को प्राप्त करने के लिए मेरे ब्लॉग पर जरूर दर्शन दें |
    धन्यवाद |
    विनीत नागपाल

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  14. बहुत सुन्दर सार्थक रचना। शब्द नही है --लाजवाब, माईंड ब्लोइन्ग एक्सेलेन्ट। शायद बापू लोगों का सच समझ गये हैं और उन्होंने आज के इन्सान को देख कर आँख कान और मुंम्ह बन्द कर लिये हैं।

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