सुन ले 'बापू' ये पैगाम, मेरी चिट्ठी तेरे नाम !
चिट्ठी में सबसे पहले लिखता तुझको राम -राम !
सुन ले 'बापू' ये पैगाम !
काला धन, काला व्यापार,
रिश्वत का है गरम बाज़ार !
सत्य - अहिंसा करे पुकार ,
टूट गया चरखे का तार !
तेरे अनशन सत्याग्रह के,
बदल गए असली बरताव !
एक नयी विद्या सीखी है,
जिसको कहते हैं 'घेराव' !
तेरी कठिन तपस्या का यह,
कैसा निकला है अंजाम !
सुन ले 'बापू' ये पैगाम !
प्रान्त - प्रान्त से टकराता है,
भाषा पर भाषा की लात !
मैं पंजाबी, तू बंगाली,
कौन करे भारत की बात !
तेरी हिंदी के पावों में,
अंग्रेजी ने बाँधी डोर !
तेरी लकड़ी ठगों ने ठग ली ,
तेरी बकरी ले गए चोर !
साबरमती सिसकती तेरी,
तड़प रहा है सेवाग्राम !
सुन ले 'बापू' ये पैगाम !
'राम- राज्य' की तेरी कल्पना,
उडी हवा में बनके कपूर !
बच्चे पढना - लिखना छोड़ ,
तोड़-फोड़ में हैं मगरूर !
नेता हो गए दल-बदलू,
देश की पगड़ी रहे उछाल !
तेरे पूत बिगड़ गए 'बापू' ,
दारुबंदी हुई हलाल !
तेरे राजघाट पर फिर भी,
फूल चढाते सुबहो - शाम !
सुन ले 'बापू' ये पैगाम !
भरत व्यास
अच्छी खरी-खरी सुनाई हैं -पर यहां सब चिकने घड़े हैं !
ReplyDeleteये सब तो बापू को भई बेच कर खाये डाल रहे हैं .
सार्थक रचना.......
ReplyDeleteतेरे राजघाट पर फिर भी,
ReplyDeleteफूल चढाते सुबहो - शाम !
सुन ले 'बापू' ये पैगाम ! bhaut hi sateek abhivaykti....
आज के हालात और राजनैतिक परिदृश्य का जीवंत चित्रण है ! बहुत प्रभावशाली रचना ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteलाजवाब!
ReplyDeleteआभार इस प्रस्तुति के लिए।
बापू के सपनों के भारत को लोगों ने क्या बना दिया है।
ReplyDeleteकडुवा लेकिन सत्य लिखा है ... आज तो अगर बापू होते तो वो भी कुछ नहीं कर पाते ...
ReplyDeleteकितना कड़वा सच है इस गीत में जब कि यह गीत आज से कई वर्ष पहले लिखा गया था... शुक्रिया इसे पढवाने का..
ReplyDeleteहमारे समय की यही हक़ीकत है। अधिक कष्टकर यह है कि भविष्य भी अनुकूल नहीं दिखता। हां,बापू के कारोबारियों के मज़े ज़रूर हैं।
ReplyDeleteतेरी लकड़ी ठगों ने ठग ली ,
ReplyDeleteतेरी बकरी ले गए चोर !
साबरमती सिसकती तेरी,
तड़प रहा है सेवाग्राम !
सुन ले 'बापू' ये पैगाम !
Sach kahtee ho!
बहुत सटीक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबापू के भारत की कल्पना के बिरोधी विकास को प्रदर्शित करते हुए उनके नाम की चिट्ठी अच्छी है। सुन्दर कविता। आभार।
ReplyDeleteनमस्कार,
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं |
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धन्यवाद |
विनीत नागपाल
बहुत सुन्दर सार्थक रचना। शब्द नही है --लाजवाब, माईंड ब्लोइन्ग एक्सेलेन्ट। शायद बापू लोगों का सच समझ गये हैं और उन्होंने आज के इन्सान को देख कर आँख कान और मुंम्ह बन्द कर लिये हैं।
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