Tuesday, 22 November 2011

सीमा के सिपाही के नाम



माँ का प्यार, बहिन की ममता,
शिशुओं  का   सुख  छोड़  कर !
यौवन   में   यौवन   के  सपनों 
से   अपना   मुख   मोड़   कर !


आंधी-सा   चल   पड़ा  हिमानी
घाटी         में     भूचाल    सा !
तन  कर  खड़ा  राष्ट्र - रक्षा को
तू      फौलादी      ढाल     सा !


ऊबड़-खाबड़     पंथ   राह  का
तू      अनजाना     आज     है 
लांघ  रहा   हिम-शिखर  हाथ
में   तेरे  माँ   की  लाज     है !


सर पर कफ़न,कफ़न वाला सर
लिए      हथेली      पर    अपने
नेफा    की   धरती   पर  करने
चला   सत्य   माँ    के   सपने !


शोणित   का   अभिषेक  आज
करने     पर्वत     कैलाश    पर
प्रलयंकर   को    चला   जगाने
मन   के    दृढ   विश्वास   पर !


बलि-पंथी !  तू आज प्रलय के
पर्दे    स्वयं    हटाता    चल !
हिमगिरी   के  प्राणों  में सोया
ज्वालामुखी    जगाता   चल !


अगर विरह की आग भड़क कर 
जले     उसे   जल    जाने     दे !
अगर   मिलन   की  बेलाएं  भी
टलें    आज,    टल    जाने   दे !


आज     गरजती     तोपों    से
करना   तुझको   आलिंगन है !
आगे   बढ़कर   महामृत्यु   को 
देना   विष   का    चुम्बन   है !


आज  मरण  त्यौहार  राष्ट्र  ने
युग-युग   बाद    मनाया   है !
आज    जवानी     को    जौहर 
दिखलाने  का  दिन  आया  है !




सुमनेश जोशी 


9 comments:

  1. बलि-पंथी ! तू आज प्रलय के
    पर्दे स्वयं हटाता चल !
    हिमगिरी के प्राणों में सोया
    ज्वालामुखी जगाता चल !

    ओजपूर्ण प्रस्तुति!

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  2. यह तो पढ़कर खून में उबाल आ जाए ऐसी कविता है। बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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  3. प्रभावशाली और सशक्त रचना.....

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  4. सैनिकों के प्रति हमारा नमन।

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  5. shat-shat naman..... prabhaavshali....

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  6. @ MANOJ JI DWARA DI GAYI TIPPANI

    मनोज कुमार has left a new comment on your post "सीमा के सिपाही के नाम":

    यह तो पढ़कर खून में उबाल आ जाए ऐसी कविता है। बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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  7. दिलों में जोश भरती हुई देश भक्ति के रंग में डूबी सुंदर रचना !

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  8. देश भक्ति का ज्वार उठाती लाजवाब रचना ...

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  9. बहुत जोश भरने वाली रचना
    देश भक्ति से लबालब सार्थक रचना

    बधाई

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