माँ का प्यार, बहिन की ममता,
शिशुओं का सुख छोड़ कर !
यौवन में यौवन के सपनों
से अपना मुख मोड़ कर !
आंधी-सा चल पड़ा हिमानी
घाटी में भूचाल सा !
तन कर खड़ा राष्ट्र - रक्षा को
तू फौलादी ढाल सा !
ऊबड़-खाबड़ पंथ राह का
तू अनजाना आज है
लांघ रहा हिम-शिखर हाथ
में तेरे माँ की लाज है !
सर पर कफ़न,कफ़न वाला सर
लिए हथेली पर अपने
नेफा की धरती पर करने
चला सत्य माँ के सपने !
शोणित का अभिषेक आज
करने पर्वत कैलाश पर
प्रलयंकर को चला जगाने
मन के दृढ विश्वास पर !
बलि-पंथी ! तू आज प्रलय के
पर्दे स्वयं हटाता चल !
हिमगिरी के प्राणों में सोया
ज्वालामुखी जगाता चल !
अगर विरह की आग भड़क कर
जले उसे जल जाने दे !
अगर मिलन की बेलाएं भी
टलें आज, टल जाने दे !
आज गरजती तोपों से
करना तुझको आलिंगन है !
आगे बढ़कर महामृत्यु को
देना विष का चुम्बन है !
आज मरण त्यौहार राष्ट्र ने
युग-युग बाद मनाया है !
आज जवानी को जौहर
दिखलाने का दिन आया है !
सुमनेश जोशी
बलि-पंथी ! तू आज प्रलय के
ReplyDeleteपर्दे स्वयं हटाता चल !
हिमगिरी के प्राणों में सोया
ज्वालामुखी जगाता चल !
ओजपूर्ण प्रस्तुति!
यह तो पढ़कर खून में उबाल आ जाए ऐसी कविता है। बहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteप्रभावशाली और सशक्त रचना.....
ReplyDeleteसैनिकों के प्रति हमारा नमन।
ReplyDeleteshat-shat naman..... prabhaavshali....
ReplyDelete@ MANOJ JI DWARA DI GAYI TIPPANI
ReplyDeleteमनोज कुमार has left a new comment on your post "सीमा के सिपाही के नाम":
यह तो पढ़कर खून में उबाल आ जाए ऐसी कविता है। बहुत सुंदर प्रस्तुति।
दिलों में जोश भरती हुई देश भक्ति के रंग में डूबी सुंदर रचना !
ReplyDeleteदेश भक्ति का ज्वार उठाती लाजवाब रचना ...
ReplyDeleteबहुत जोश भरने वाली रचना
ReplyDeleteदेश भक्ति से लबालब सार्थक रचना
बधाई