विचारो के
ज़हर भरे कांटे
जब मन में उगने लगते हैं तो..
विषाक्त हो जाता है
पूरा वजूद रूपी पेड..
तब चन्दन की खुशबु देने वाले
भाव भी
ज़हर में डूबने लगते है..!
नहीं रोक पाता
कोई भी विवेक..!
सब्र का घूँट पिला देने पर भी..
नहीं शांत होता
मन का उद्वेग..
और..
बिखर जाती है..
मन की
किर्चन..किर्चन..
और कर जाती है
लहुलुहान मुझे
हर पल..प्रति पल..!!
Wednesday, 13 January 2010
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विषाक्त हो जाता है
ReplyDeleteपूरा वजूद रूपी पेड..
तब चन्दन की खुशबु देने वाले
भाव भी
ज़हर में डूबने लगते है..!
बिल्कुल सही लिखा है.....जाकी रही भावना जैसी , प्रभु मूरत देखी तिन तैसी
अच्छी रचना..
पूरा वजूद रूपी पेड..
ReplyDeleteतब चन्दन की खुशबु देने वाले
भाव भी
ज़हर में डूबने लगते है..!
bas dil ko choo gayee aapakee r5acanaa badhaaI bahut bahut shubhakaamanayeM
सब्र का घूँट पिला देने पर भी..
ReplyDeleteनहीं शांत होता
मन का उद्वेग..
और..सही कहा इस तरह के हालात से अक्सर मन गुजरता है .आपने इन भावों को बखूबी लफ़्ज़ों में समेटा है ..शुक्रिया
ये बेबुनियादी अहं की बहस ...और उससे उगते कांटे दूरियां पैदा कर जातें हैं ताउम्र की .....सुंदर भाव.....!!
ReplyDeletebehtreen....
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