Saturday, 20 March 2010

प्रेम


प्रेम एक भावनागत विषय है, भावना से ही इसका पोषण होता है, भावना से ही जीवित रहता है और भावना ही से लुप्त हो जाता है ! "तुम मेरे हो " जिस दिन इस विश्वास की जड हिल जाती है, उसी दिन प्रेम खतम हो जाता है !!
.....मुन्शी प्रेम चंद

4 comments:

  1. अनामिका जी आपके इस ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ
    आपका ये प्रयास बेहतर है
    अच्छा लगा
    आपके इस पोस्ट के बारे में जों कहना है वो यही है
    कि शादी और प्यार को दो वाक्यों में बड़ी गहराई से समझा जा सकता है देखिये -

    प्रेम = मै सिर्फ तुम्हारी/तुम्हारा हूँ
    विवाह= तुम सिर्फ मेरी/मेरे हो

    सुंदर प्रयास है ये ....बधाई

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  2. वाह ...अनामिका !

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  3. सबसे कम कमेन्ट देखे और यहीं रुक गया अपनी बात कहने के लिए
    नाचीज़ के ब्लोग्स पर कमेन्ट के लिए धन्यवाद ! आपका यह संकलन बहुत ही सुन्दर है .. प्रेरक, उदबोधक, प्रासंगिक .. नारी मन को लेकर अभी अभी धर्मवीर भारती का कथन पढ़ा अंतर तक छु गया .. सचमुच बड़े लेखक बड़े ही होते हैं ..पुनः धन्यवाद !

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