देशहित पैदा हुए हैं, देश पर मर जायेंगे !
मरते - मरते देश को जिन्दा मगर कर जायेंगे !
हमको पीसेगा फलक, चक्की में अपनी कब तलक
ख़ाक बनकर आँख में उसकी बसर कर जायेंगे !
कर रही बर्गे-खिजा को वादे सरसर दूर क्यों,
पेशवा-ए-फासले-गुल हैं खुद समर कर जायेंगे !
खाक में हमको मिलाने का तमाशा देखना,
तुख्म रेज़ी से नए पैदा शज़र कर जायेंगे !
नौ-नौ आंसू जो रुलाते हैं हमें, उनके लिए,
अश्क के सैलाब से बरपा हषर कर जायेंगे !
गर्दिशे-गिरदाब में डूबे तो कुछ परवा नहीं,
बहरे-हस्ती में नयी पैदा लहर कर जायेंगे !
क्या कुचलते हैं समझकर वो हमें बर्ग-हिना
अपने खूं से हाथ उनके तर-बतर कर जायेंगे !
नक़्शे-पा से क्या मिटाता तू हमें पीरे-फलक
रहवरी का काम देंगे जो गुजर कर जायेंगे.
आज़ाद
अहा।
ReplyDeleteबहुत जोश दिलाता हुआ गीत !
ReplyDeleteप्रेरक प्रस्तुति!
ReplyDeleteखूबसूरत संकलन , एक अनुकरणीय ब्लॉग बधाई
ReplyDeleteहे भगवान ! उर्दू के इतने वड्डे वड्डे शब्द कहाँ से लाई हो? ऊपर से निकल जाते जो जोक ,ग़ालिब को न पढा होता.चलो आमीन .हम भी चाहते हैं मुल्क मे यह सब हो.
ReplyDeleteबहुत उम्दा गज़ल और हर शेर आग उगलता हुवा ...
ReplyDeleteअनामिका जी, बस अब क्या कहूँ.अच्छी लगी ये गज़ल हर एक शेर लाजवाब. बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना आपने आज प्रस्तुत किया है।
ReplyDeleteऐसे हौसलों से ही मंज़िल पाई जाती है।
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