Tuesday 20 September 2011

मैं उनके गीत गाता हूँ




मैं उनके गीत गाता हूँ, मैं उनके गीत गाता हूँ.

जो शाने पर बगावत का अलम लेकर निकलते हैं.
किसी जालिम हुकूमत के धड़कते दिल पे चलते हैं.
मैं उनके गीत गाता हूँ, मैं उनके गीत गाता हूँ.

जो रख देते हैं सीना गर्म तोपों के दहानों पर,
नजर से जिनकी बिजली कौंधती है आसमानों पर,
मैं उनके गीत गाता हूँ, मैं उनके गीत गाता हूँ.

जो आजादी की देवी को लहू की भेंट देते हैं,
सदाकत के लिए जो हाथ में तलवार लेते हैं.
मैं उनके गीत गाता हूँ, मैं उनके गीत गाता हूँ.

जो परदे चाक करते हैं हुकूमत की सियासत के,
जो दुश्मन हैं कदामत के, जो हामी हैं बगावत के,
मैं उनके गीत गाता हूँ, मैं उनके गीत गाता हूँ.

कुचल सकते हैं जो मजदूर जर के आस्तानों को,
जो जलकर आड़ दे देते हैं जंगी कारखानों को,
मैं उनके गीत गाता हूँ, मैं उनके गीत गाता हूँ.

झुलस सकते हैं जो शोलों से, कुफ्रों दीं की बस्ती को,
जो लानत जानते हैं मुल्क में, फिरका परस्ती को,
मैं उनके गीत गाता हूँ, मैं उनके गीत गाता हूँ.

वतन के नौजवानों में नए जज्बे जगाऊंगा,
मैं उनके गीत गाऊँगा , मैं उनके गीत गाऊँगा , 
मैं उनके गीत गाऊँगा , मैं उनके गीत गाऊँगा .


जानिसार अख्तर 



12 comments:

  1. प्रेरक प्रस्तुति!

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  2. बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद

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  3. .... शानदार प्रेरक प्रस्तुति!

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  4. उत्साह जगाती पंक्तियाँ।

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  5. बेहतरीन प्रस्तुती....

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  6. जो परदे चाक करते हैं हुकूमत की सियासत के,
    जो दुश्मन हैं कदामत के, जो हामी हैं बगावत के,
    मैं उनके गीत गाता हूँ, मैं उनके गीत गाता हूँ...bahut hi achhe ehsaas , utkrisht bhawna

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  7. इस रचना को पढ़वाने का आभार।

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  8. जानिसार अख्तर जी का गीत पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद ...

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  9. प्रेरक प्रस्तुति!बहुत सुन्दर...

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  10. बहुत प्रेरक प्रस्तुति...पढवाने के लिये आभार ...

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