अंहकार को ध्वंस कर..
पूर्ण श्रद्धा से..
खुद को समर्पण
करने में ही.....
चरम आनंद की
प्राप्ति की जा सकती है..!!
जबकि..
प्रेम अधिकार चाहता है..
प्रेम जो देता है..
उसके बदले में
कुछ ना कुछ पाना चाहता है..!!
Thursday, 24 December 2009
Monday, 14 December 2009
त्याग
संपत्तीशाली पुरुष संपत्ती के गुलाम होते हैं. वे कभी सत्य के समर में नही आ सकते ! जो सिपाही गर्दन में सोने की ईट बांध कर लडने चलता हैं, वह कभी नही लड सकता ! उसको तो अपनी ईट की चिंता लगी रहती हैं! जब तक इन्सान ममता का त्याग नही करेगा उसका उद्देश्य कभी पुरा नही होगा !!
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