Tuesday 20 July 2010
इकरार का फूल
तुम्हारे इकरार को फूल की तरह नहीं पकड़ा था, अपनी मुट्ठी में भींच लिया था. वह कई बरस मेरी मुट्ठी में खिला रहा. पर मांस की हथेली मांस की होती है, यह मिटटी की तरह हमेशा जवान नहीं रहती. इस पर समय की सलवटें पड़ती हैं और जब यह बंजर होने लगती है तो इसमें उगा हर पत्ता मुरझा जाता है. तुम्हारे इकरार का फूल भी मुरझा गया............अमृता प्रीतम
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