Wednesday 20 January 2010

हमारे संस्कार

हम लोग ना उच्च वर्ग के हैं, ना निम्न वर्ग के. हमारे यहा रुडिया, परम्पराये, मर्यादाये भी ऐसी पुरानी और विषाक्त हैं कि कुल मिलाकर हम सब पर ऐसा प्रभाव पडता हैं कि हम यंत्र मात्र रह जाते हैं. हमारे अंदर उदार और उंचे सपने खतम हो जाते हैं. लेकिन ये भी सच हैं कि जब पूरी व्यवस्था बे-इमान हैं तो हमारी इमानदारी इसी में हैं कि इस व्यस्था पर लादी सारी नैतिक विकृती को भी अस्वीकार करे और उस द्वारा आरोपित सारी झूठी मर्यादाओ को भी. लेकिन हम विद्रोह नही कर पाते, सो नतीजा यह कि समझोता करते हैं. मतलब संस्कारो का अंधानुकरण ..! और ऐसे भले आदमी कहलाये जाते हैं..उनकी तारीफ भी होती हैं, परंतु जिंदगी बेहद करुण और भयानक हो जाती हैं. और सबसे बडा दुख यह कि वह अपने जीवन का यह पह्ळू नही समझते और बैल की तरह तमाम उम्र चक्कर लगाते रहते हैं.

Wednesday 13 January 2010

मन का उद्वेग..

विचारो के
ज़हर भरे कांटे
जब मन में उगने लगते हैं तो..
विषाक्त हो जाता है
पूरा वजूद रूपी पेड..
तब चन्दन की खुशबु देने वाले
भाव भी
ज़हर में डूबने लगते है..!
नहीं रोक पाता
कोई भी विवेक..!
सब्र का घूँट पिला देने पर भी..
नहीं शांत होता
मन का उद्वेग..
और..
बिखर जाती है..
मन की
किर्चन..किर्चन..
और कर जाती है
लहुलुहान मुझे
हर पल..प्रति पल..!!

Friday 8 January 2010

प्यार और बंधन

प्यार जैसी निर्मम वस्तू
क्या भय से
बांधकर रखी जा सकती है ...?
नहीं....!!

वह तो चाहता है..
पूरा विश्वास..
पूरी स्वाधीनता ..
और साथ में पूरी जिम्मेदारी..!

इसमें फैलने की असीमता है..
जिस पर
बंधन रूपी ईटो की दिवार
नहीं बन सकती..!!