कई इंसानों में प्रेमाग्नी जितनी प्रबळ होती है उसे दमन करने की शक्ती भी असीम होती है. कई बार प्रेमाग्नी को दबाते-दबाते इन्सान की अवस्था ऐसी हो जाती है मानो वर्षों का रोगी हो. प्रेमियो को अपनी अभिलाषा पूरी होने की आशा हो या ना हो, परंतु वो मन ही मन अपनी प्रेमिकाओं से मिलने का आनंद उठाते रहते हैं . वे भाव संसार में अपने प्रेम पात्र से वार्तालाप करते हैं. उसे छेड़ते हैं , उससे रूठते हैं . उसे मनाते हैं और इन भावों में उन्हें तृप्ति मिलती है और मन को एक सुखद और रसमय कार्य मिल जाता है. परन्तु कोई शक्ति उन्हें इस भावोद्यान की सैर करने से रोके तो उन अभागों की दया शोचनीय हो जाती है.
अम्रिता प्रीतम