Sunday, 12 September 2010

सन्नाटा..

आज मैं सारा दुख अपने ऊपर उतार लेना चाहता हूँ. आज एक ऐसा सन्नाटा है जो न किसी को आने को आमंत्रित करता है और न किसी को जाने से रोकता है.  आज मैं एक ऐसा मैदान हूँ जिस पर की सारी पगडंडियाँ तक मिट गयी हैं. एक ऐसी डाल जिसके सारे फूल झड चुके हों. सारे घोंसले उजड गए हैं. मन में असीम कुंठा और वेदना है .  ऐसा कोई नहीं कि मेरे घावों को छू ले तो मैं आंसुओं में बिखर पडूँ.


धरमवीर भारती.