Monday 5 September 2011

तरान-ए-आज़ाद

देशहित पैदा हुए हैं, देश पर मर जायेंगे !
मरते - मरते देश को जिन्दा मगर कर जायेंगे !

हमको पीसेगा फलक, चक्की में अपनी कब तलक 
ख़ाक बनकर आँख में उसकी बसर कर जायेंगे !

कर रही बर्गे-खिजा को वादे सरसर  दूर क्यों,
पेशवा-ए-फासले-गुल हैं खुद समर कर जायेंगे !

खाक में हमको मिलाने का तमाशा देखना,
तुख्म रेज़ी से नए पैदा शज़र कर जायेंगे !

नौ-नौ आंसू जो रुलाते हैं हमें, उनके लिए,
अश्क के सैलाब से बरपा हषर कर जायेंगे !

गर्दिशे-गिरदाब में डूबे तो कुछ परवा नहीं,
बहरे-हस्ती में नयी पैदा लहर कर जायेंगे !

क्या कुचलते हैं समझकर वो हमें बर्ग-हिना
अपने खूं से हाथ उनके तर-बतर कर जायेंगे !

नक़्शे-पा से क्या मिटाता तू हमें पीरे-फलक 
रहवरी का काम देंगे जो गुजर कर जायेंगे.



आज़ाद 

9 comments:

  1. बहुत जोश दिलाता हुआ गीत !

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  2. प्रेरक प्रस्तुति!

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  3. खूबसूरत संकलन , एक अनुकरणीय ब्लॉग बधाई

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  4. हे भगवान ! उर्दू के इतने वड्डे वड्डे शब्द कहाँ से लाई हो? ऊपर से निकल जाते जो जोक ,ग़ालिब को न पढा होता.चलो आमीन .हम भी चाहते हैं मुल्क मे यह सब हो.

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  5. बहुत उम्दा गज़ल और हर शेर आग उगलता हुवा ...

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  6. अनामिका जी, बस अब क्या कहूँ.अच्छी लगी ये गज़ल हर एक शेर लाजवाब. बधाई

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  7. बहुत सुंदर रचना आपने आज प्रस्तुत किया है।

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  8. ऐसे हौसलों से ही मंज़िल पाई जाती है।

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