Saturday, 13 November 2010

सोलवां बरस ..

सोलवां बरस इश्वर की साजिश की तरह होता है जो जिंदगी के हर वर्ष में कहीं ना कहीं शामिल होता है. यह बचपन की समाधि तोड़ देता है. और जब कोई समाधि टूटती है तो भटकनें का श्राप उसके पीछे पड़ जाता है...हमारे पीछे भी एक सोचों का शाप पीछे पड़ा है. उम्र के सोलवें साल में हर विश्वास पारंपरिक होता है और इसलिए दकियानूसी भी.  वास्तव में यह वर्ष आयु की सड़क पर लगा हुआ खतरे का चिन्ह होता है (की बीते वर्षों की सपाट सड़क खतम हो गयी है, आगे ऊँची - नीची और भयानक मोडों वाली सड़क शुरू होने वाली है ). इस वर्ष जाना-पहचाना सब कुछ शरीर के वस्त्रों की तरह तंग हो जाता है . होंठ जिंदिगी की प्यास से खुश्क हो जाते हैं, आकाश के तारे जिन्हें सप्त-ऋषियों के आकार में देख कर दूर से प्रणाम करना होता था, पास जा कर छू लेने को जी करता है. इर्द - गिर्द और दूर पास की हवा में इतनी मनाहियाँ और इतने इनकार होते हैं, इतना विरोध की सांसो में आग सुलग उठती है.

अमृता प्रीतम 

Sunday, 12 September 2010

सन्नाटा..

आज मैं सारा दुख अपने ऊपर उतार लेना चाहता हूँ. आज एक ऐसा सन्नाटा है जो न किसी को आने को आमंत्रित करता है और न किसी को जाने से रोकता है.  आज मैं एक ऐसा मैदान हूँ जिस पर की सारी पगडंडियाँ तक मिट गयी हैं. एक ऐसी डाल जिसके सारे फूल झड चुके हों. सारे घोंसले उजड गए हैं. मन में असीम कुंठा और वेदना है .  ऐसा कोई नहीं कि मेरे घावों को छू ले तो मैं आंसुओं में बिखर पडूँ.


धरमवीर भारती.

Tuesday, 20 July 2010

इकरार का फूल

तुम्हारे इकरार को फूल की तरह नहीं पकड़ा था, अपनी मुट्ठी में भींच लिया था. वह कई बरस मेरी मुट्ठी में खिला रहा. पर मांस की हथेली मांस की होती है, यह मिटटी की तरह हमेशा जवान नहीं रहती. इस पर समय की सलवटें पड़ती हैं और जब यह बंजर होने लगती है तो इसमें उगा हर पत्ता मुरझा जाता है. तुम्हारे इकरार का फूल भी मुरझा गया............अमृता प्रीतम

Tuesday, 11 May 2010

बदलाव

जीवन को सुधारने के लिए सिर्फ आर्थिक ढांचा बदल देने भर की जरुरत नहीं है, उसके लिए आदमी का सुधार करना होगा, व्यक्ति का सुधार करना होगा. वर्ना एक भरे - पूरे और वैभवशाली समाज में भी आज के से स्वस्थ और पाशविक वृतियों वाले व्यक्ति रहेंगे तो दुनियाँ ऐसी ही लगेगी जैसे एक खूबसूरत सजा-सजाया महल जिसमें कीड़े और राक्षस रहते हैं.
धर्म वीर भारती

Tuesday, 4 May 2010

दुखांत ये नहीं होता .....

दुखांत यह नहीं होता कि रात की कटोरी को कोई जिन्दगी के शहद से भर न सके, और वास्तविकता के होंठ कभी उस शहद को चख ना सकें ....दुखांत यह होता है कि जब रात की कटोरी पर से चंद्रमाँ की कलई उतर जाये और उस कटोरी में पड़ी कल्पनाये कसैली हो जाये.

दुखांत ये नहीं होता की आपकी किस्मत से आपके साजन का नाम-पता ना पढ़ा जाये और आपकी उम्र की चिट्ठी सदा रुलती रहे. दुखांत यह होता है कि आप अपने प्रिये को अपनी उम्र कि सारी चिट्ठी लिख लें और आपके पास से आपके प्रिये का नाम पता खो जाये.

दुखांत यह नहीं होता कि जिन्दगी की लम्बी डगर पर समाज के बंधन अपने कांटे बिखेरते रहे..और आपके पैरो में से सारी उम्र लहू बहता रहे. दुखांत यह होता है कि आप लहू लुहान पैरो से एक ऐसी जगह पर खड़े हो जाये जिसके आगे कोई रास्ता आपको बुलावा न दे.

दुखांत यह नहीं होता कि आप अपने इश्क के ठिठुरते शरीर के लिए सारी उम्र गीतों के पैरहन सीते रहें. दुखांत यह होता है कि इन पैरहनो को सीने के लिए आपके विचारो का धागा चूक जाये और आपकी सुई (कलम) का छेद टूट जाये.

....अम्रिता प्रीतम

Sunday, 2 May 2010

अंतर्द्वंद

सत-असत, पाप- पुन्य, न्याय-अन्याय, राग-विराग से युक्त जब दो भाव एक साथ उत्पन्न होते हैं तो मनुष्य विचार के आधार पर निर्णय नहीं कर पता कि किस पक्ष को स्वीकार करू अथवा किसका त्याग करूं ऐसी स्थिति में उस के भीतर 'हाँ-नहीं' में खींचतान चलती रहती है, वाही अंतर्द्वंद कहलाता है.

Wednesday, 28 April 2010

मानव हृदय

मानव हृदय एक रहस्यमय वस्तु है. कभी तो वह लाखो की ओर आंख उठा कर नही देखता और कभी कौडियो पर फिसल जाता है. कभी सैकडो निर्दोशो की हत्या पर आह तक नही करता और कभी एक बच्चे को देख कर ही रो पडता है. ....अम्रिता प्रीतम

Monday, 19 April 2010

प्यार का अंत

जनम लेने के बाद मरना पडता है जैसे आकाश में उछाला पत्थर भी जमीन पर गिरता ही है . खून कर के फांसी होती है और चोरी करने पर जेल जाना पडता है , उसी प्रकार प्यार करने पर रोना पडता है. सुना है कि प्यार करने वाले की अंत में दर्द से पीडित होकर छाती फटती है ! ....अम्रिता प्रीतम

Friday, 16 April 2010

कविता से क्या मिलता है ?

कविता से क्या मिलता है ?
एक काल्पनिक प्रशंसनीय जीवन
जो दूसरो की दया पर अपना अस्तित्व रखता है ...!

........जय शंकर प्रसाद (नाटक स्कंदगुप्त )

Saturday, 10 April 2010

नारी मन ...

कभी कभी नारी को जिस चीज के प्रती जितना आकर्षण होता है नारी उस से उतनी ही दूर भागती है. अगर कोई ,प्याला मुह से ना लगा कर दूर फैंक दे तो समझ लो वो बेहद प्यासा है. इतना प्यासा कि तृप्ती की कल्पना से भी घबराता है .
धरम वीर भारती

Tuesday, 6 April 2010

व्यक्तित्व की पहचान

सोने की पहचान आग से होती है और व्यक्तित्व की पहचान भी तभी होगी जब वो काठीनाईयो से, वेदनाओ से, संघर्षो से खेळे और बाद में विजयी हो . तभी पता चलता है व्यक्तित्व में कितना प्रकाश और बळ है
धरम वीर भारती

Friday, 26 March 2010

एक कहानी अम्रिता प्रीतम की जुबानी

एक औरत थी उसने सच्चे मन से मुहोब्बत की थी . एक बार उसके प्रेमी ने उसके बालो में लाल गुलाब का फूल लगा दिया . तब उस औरत ने मुहोब्बत के बडे प्यारे गीत लिखे. लेकिन वह मुहोब्बत परवान ना चढी . तो उस औरत ने अपनी जिंदगी समाज के गळत मूल्यो पर न्योछावर कर दी. एक असह्य पीडा उसके दिल में घर कर गयी और वह सारी उम्र अपनी कलम को उस पीडा में डूबोकर गीत लिखती रही. 'आत्म-वेदना एक वह द्रिष्टी प्रदान करती है, जिसमे कोई परायी पीडा को देख सकता है' . उसने अपनी पीडा में समूची मानवता की पीडा को मिला लिया और फिर ऐसे गीत लिखे जिनमे सिर्फ उसकी नही जगत की पीडा थी. फिर वह औरत मर गयी और उसकी कब्र पर ना जाने किस तऱ्ह तीन गुलाब उग आये. कहते है उस औरत ने जो मुहोब्बत के गीत लिखे वो लाल गुलाब बन गये, जो दर्द भरे गीत लिखे वो काळे गुलाब बन गये और जो मानव प्रेम के गीत लिखे वो सफेद गुलाब बन गये.
.........अम्रिता प्रीतम

Saturday, 20 March 2010

प्रेम


प्रेम एक भावनागत विषय है, भावना से ही इसका पोषण होता है, भावना से ही जीवित रहता है और भावना ही से लुप्त हो जाता है ! "तुम मेरे हो " जिस दिन इस विश्वास की जड हिल जाती है, उसी दिन प्रेम खतम हो जाता है !!
.....मुन्शी प्रेम चंद

Sunday, 14 March 2010

पुरुष स्वभाव

यदि पुरुष की उपेक्षा करो, सीधे मुह बात ना करो तो वो तुम्हारा सब प्रकार से आदर करेंगे, तुम पर प्राण समर्पण करेंगे, परंतु ज्यू ही ज्ञात हो गया कि अब इसके हृदय में मेरा प्रेम हो गया है उसी दिन से दृष्टी फिर जायेगी, बात बात पर रुठेंगे, रोओगी तो ना मनायेंगे ! मन ही मन प्रसन्न होंगे कि कैसा फंडा डाला है ! हमारे सम्मुख और स्त्रियो कि प्रशंसा करेंगे ! हमे जलाने में आनंद अनुभव करेंगे !!

........मुन्शी प्रेम चंद

Sunday, 7 March 2010

स्पर्श की ताकत

औरत अपने प्रति आने वाले प्यार और आकर्षण को समझने में चाहे एक बार भूल कर जायें, लेकिन वह अपने प्रति आने वाली उदासी और उपेक्षा को पहचानने में कभी भूल नही करती. वह होठो पर होठो से स्पर्शो के गूढतम अर्थ समझ सकती है. वह आपके स्पर्श में आपकी नसो से चलती हुई भावना को पहचान सकती है. यदि उसे थोडा सा भी अनुभव है और आप उसके हाथ पर हाथ रखते है तो स्पर्श की अनुभूती से ही जान जायेगी कि आप उस से कोई प्रश्न कर रहे है, कोई याचना कर रहे है, सांत्वना दे रहे है या सांत्वना मांग रहे है. क्षमा मांग रहे है या क्षमा दे रहे है. प्यार का प्रारंभ कर रहे है...या समाप्त कर रहे है. स्वागत कर रहे है या विदा दे रहे है. यह पुलक का स्पर्श है या उदासी का चाव और नशे का स्पर्श है या खिन्नता और बेमनी का...!!
......... धरम वीर भारती

Friday, 26 February 2010

विवाह ...

एक विवाह रस्म से होता है, एक विवाह दिल से होता है . रस्म वाला विवाह टूट जाये, मुश्किले आयें, मुसीबते हो पर उन सब को इन्सान आखिर झेल जाता है ...पर दिल के विवाह में कुछः नही बचता !
......अम्रिता प्रीतम

Monday, 22 February 2010

बदलाव

जो लोग भावुक होते हैं और सिर्फ रोते हैं, वो रो-धो कर रह जाते हैं. पर जो लोग हसना सीख लेते हैं, वे कभी कभी हस्ते हस्ते उस जिंदगी को बदल भी डालते हैं.

Saturday, 13 February 2010

मन का झुकाव

कब कहा और कैसे हम अपने मन को हार बैठते है, यह खुद हमे नही पता चलता. मालूम तब होता है जब जिसके कदमो पर हमने अपना सिर रख्खा हो और वह झटके से अपने कदम घसीट ले. उस वक्त हमारी नींद टूटती है और तब हम जा कर देखते है कि अरे हमारा सिर तो किसी के कदमो पर रख्खा हुआ था और उसके सहारे हम आराम से सोते हुये सपना देख रहे थे कि हमारा सिर कहीं झुका ही नही.

Tuesday, 2 February 2010

स्त्री सुलभ व्यक्तित्व

जब स्त्री को जीवन की असाधारण कठीनाईयो का सामना करना पडता हैं तो उसके स्त्री सुलभ व्यक्तित्व और चरित्र पर एक प्रकार की कठोरता अंकित हो जाती हैं और उसका भाग्य कुंठित हो जाता हैं, क्युकी यदि वह भावुक और सुकोमल बनी रही तो उसका अंत हो जायेगा और यदि जीवित रही तो उसके अंतस की सुकोमलता सर्वथा नष्ट हो जायेगी. और बाह्य आकृती में परिवर्तन ना होने पर भी उसका हृदय इतना टूट जायेगा की वह हृदय के भाव को कभी व्यक्त नही कर पायेगी.

Wednesday, 20 January 2010

हमारे संस्कार

हम लोग ना उच्च वर्ग के हैं, ना निम्न वर्ग के. हमारे यहा रुडिया, परम्पराये, मर्यादाये भी ऐसी पुरानी और विषाक्त हैं कि कुल मिलाकर हम सब पर ऐसा प्रभाव पडता हैं कि हम यंत्र मात्र रह जाते हैं. हमारे अंदर उदार और उंचे सपने खतम हो जाते हैं. लेकिन ये भी सच हैं कि जब पूरी व्यवस्था बे-इमान हैं तो हमारी इमानदारी इसी में हैं कि इस व्यस्था पर लादी सारी नैतिक विकृती को भी अस्वीकार करे और उस द्वारा आरोपित सारी झूठी मर्यादाओ को भी. लेकिन हम विद्रोह नही कर पाते, सो नतीजा यह कि समझोता करते हैं. मतलब संस्कारो का अंधानुकरण ..! और ऐसे भले आदमी कहलाये जाते हैं..उनकी तारीफ भी होती हैं, परंतु जिंदगी बेहद करुण और भयानक हो जाती हैं. और सबसे बडा दुख यह कि वह अपने जीवन का यह पह्ळू नही समझते और बैल की तरह तमाम उम्र चक्कर लगाते रहते हैं.

Wednesday, 13 January 2010

मन का उद्वेग..

विचारो के
ज़हर भरे कांटे
जब मन में उगने लगते हैं तो..
विषाक्त हो जाता है
पूरा वजूद रूपी पेड..
तब चन्दन की खुशबु देने वाले
भाव भी
ज़हर में डूबने लगते है..!
नहीं रोक पाता
कोई भी विवेक..!
सब्र का घूँट पिला देने पर भी..
नहीं शांत होता
मन का उद्वेग..
और..
बिखर जाती है..
मन की
किर्चन..किर्चन..
और कर जाती है
लहुलुहान मुझे
हर पल..प्रति पल..!!

Friday, 8 January 2010

प्यार और बंधन

प्यार जैसी निर्मम वस्तू
क्या भय से
बांधकर रखी जा सकती है ...?
नहीं....!!

वह तो चाहता है..
पूरा विश्वास..
पूरी स्वाधीनता ..
और साथ में पूरी जिम्मेदारी..!

इसमें फैलने की असीमता है..
जिस पर
बंधन रूपी ईटो की दिवार
नहीं बन सकती..!!