तुम कल्पना करो, नवीन कल्पना करो !
तुम कल्पना करो !
अब घिस गयी समाज की तमाम नीतियां,
अब घिस गयी मनुष्य की अतीत रीतियाँ,
है दे रहीं चुनौतियाँ तुम्हें कुरीतियाँ,
निज राष्ट्र के शरीर के सिंगार के लिए --
तुम कल्पना करो, नवीन कल्पना करो !
तुम कल्पना करो !
जंजीर टूटती कभी न अश्रुधार से,
दुख-दर्द दूर भागते नहीं दुलार से,
हटती न दासता पुकार से, गुहार से,
इस गंग-तीर बैठ आज राष्ट्र शक्ति की --
तुम कामना करो, किशोर, कामना करो !
तुम कामना करो !
जो तुम गए, स्वदेश की जवानियाँ गयी,
चित्तौड़ के प्रताप की कहानियां गयी,
आज़ाद देश रक्त की रवानियाँ गयी,
अब सूर्य-चन्द्र की समृद्धि ऋषि-सिद्धि की --
तुम याचना करो, दरिद्र, याचना करो !
तुम याचना करो !
जिसकी तरंग लोल हैं अशांत सिन्धु वह,
जो काटता घटा प्रगाड़ वक्र ! इंदु वह,
जो मापता समग्र सृष्टि दृष्टि-बिंदु वह,
वह है मनुष्य, जो स्वदेश की व्यथा हरे,
तुम यातना हरो, मनुष्य, यातना हरो !
तुम यातना हरो !
तुम प्रार्थना किये चले, नहीं दिशा हिली,
तुम साधना किये चले, नहीं निशा हिली,
इस आर्त दीन देश की न दुर्दशा हिली,
अब अश्रु दान छोड़ आज शीश दान से --
तुम अर्चना करो, अमोध, अर्चना करो !
तुम अर्चना करो !
आकाश है स्वतंत्र, है स्वतंत्र मेखला,
यह श्रृंग भी स्वतंत्र ही खड़ा बना ढला,
है जल प्रपात काटता सदैव श्रृंखला,
आनंद, शोक, जन्म और मृत्यु के लिए --
तुम योजना करो, स्वतंत्र योजना करो !
तुम योजना करो !
गोपाल सिंह नेपाली
नेपाली जी की रचनाएं खून में उबाल ला देती हैं। एक जोश पैदा कर देती हैं।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जंजीर टूटती कभी न अश्रुधार से,
ReplyDeleteदुख-दर्द दूर भागते नहीं दुलार से,
हटती न दासता पुकार से, गुहार से,
इस गंग-तीर बैठ आज राष्ट्र शक्ति की --
तुम कामना करो, किशोर, कामना करो !
तुम कामना करो !
yah rachna anukarniy hai, padhwane ke liye shukriya
इस प्रस्तुति के लिए आभार!
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति ..
ReplyDeleteअत्यंत ओजस्वी एवं जोश से भरपूर रचना ! कई दिनों के बाद गोपाल सिंह नेपाली जी की यह रचना पढ़ कर मन मुग्ध हो गया ! यह रचना मुझे बहुत पसंद है ! आभार आपका इसे पुन: पढने का अवसर प्रदान किया !
ReplyDeleteउत्साह का संचार करती पंक्तियाँ। बहुत ही अच्छी।
ReplyDeleteNav nirmaan kaa sandesh detee yah rachana,behad zabardast hai!
ReplyDeleteजंजीर टूटती कभी न अश्रुधार से,
ReplyDeleteदुख-दर्द दूर भागते नहीं दुलार से,
हटती न दासता पुकार से, गुहार से,
इस गंग-तीर बैठ आज राष्ट्र शक्ति की --
तुम कामना करो, किशोर, कामना करो
waah kya kaha hai
जंजीर टूटती कभी न अश्रुधार से,
ReplyDeleteदुख-दर्द दूर भागते नहीं दुलार से,
हटती न दासता पुकार से, गुहार से,
इस गंग-तीर बैठ आज राष्ट्र शक्ति की --
तुम कामना करो, किशोर, कामना करो !
...बहुत ओजमयी और प्रेरक प्रस्तुति...नस नस में ऊर्जा भर देती है...बधाई !
behtreen........
ReplyDeleteAaj paristhitiyan bhale badal gai hon,par ab bhi Yuva-shakti hi sahaara hai.Afsos,ki aaj ki veer-ras wali kavitayen Pakistan par hi jaakar khatm ho jati hain.Ye kavita kuchh shashvat moolyon ko liye hai,isliye aaj bhi praasangik hai.
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