Tuesday 13 December 2011

नवीन कल्पना करो






तुम  कल्पना  करो, नवीन  कल्पना करो !
                                तुम  कल्पना  करो !


अब घिस गयी समाज की तमाम नीतियां,
अब घिस गयी मनुष्य  की अतीत रीतियाँ,
है   दे   रहीं   चुनौतियाँ   तुम्हें    कुरीतियाँ,
निज  राष्ट्र  के  शरीर  के  सिंगार  के  लिए --

तुम  कल्पना  करो, नवीन  कल्पना करो !
                                तुम  कल्पना  करो !

जंजीर   टूटती    कभी    न    अश्रुधार   से,
दुख-दर्द    दूर    भागते    नहीं   दुलार   से,
हटती   न   दासता   पुकार   से,  गुहार  से,
इस  गंग-तीर   बैठ  आज  राष्ट्र  शक्ति  की --
तुम  कामना करो, किशोर, कामना करो !
                                  तुम कामना करो !

जो तुम  गए, स्वदेश  की जवानियाँ  गयी,
चित्तौड़   के  प्रताप   की   कहानियां  गयी,
आज़ाद   देश   रक्त  की   रवानियाँ   गयी,
अब सूर्य-चन्द्र की समृद्धि ऋषि-सिद्धि की --
तुम   याचना  करो,  दरिद्र,  याचना करो !
                                  तुम याचना करो !

जिसकी तरंग लोल हैं अशांत सिन्धु वह,
जो  काटता  घटा  प्रगाड़  वक्र !  इंदु  वह,
जो  मापता  समग्र  सृष्टि  दृष्टि-बिंदु  वह,
वह  है मनुष्य,  जो स्वदेश की व्यथा हरे,
तुम  यातना  हरो,  मनुष्य, यातना हरो !
                                 तुम यातना हरो !

तुम  प्रार्थना किये चले, नहीं दिशा हिली,
तुम साधना किये चले, नहीं निशा हिली,
इस  आर्त  दीन  देश  की न दुर्दशा हिली,
अब  अश्रु दान  छोड़  आज शीश दान से --
तुम  अर्चना करो, अमोध, अर्चना करो !
                                तुम अर्चना करो !

आकाश  है  स्वतंत्र,  है  स्वतंत्र  मेखला,
यह  श्रृंग  भी  स्वतंत्र ही खड़ा बना ढला,
है  जल  प्रपात   काटता  सदैव  श्रृंखला,
आनंद, शोक, जन्म और मृत्यु के लिए --
तुम योजना करो, स्वतंत्र योजना करो !
                               तुम योजना करो !


                             गोपाल सिंह नेपाली 


11 comments:

  1. नेपाली जी की रचनाएं खून में उबाल ला देती हैं। एक जोश पैदा कर देती हैं।
    बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  2. जंजीर टूटती कभी न अश्रुधार से,
    दुख-दर्द दूर भागते नहीं दुलार से,
    हटती न दासता पुकार से, गुहार से,
    इस गंग-तीर बैठ आज राष्ट्र शक्ति की --
    तुम कामना करो, किशोर, कामना करो !
    तुम कामना करो !
    yah rachna anukarniy hai, padhwane ke liye shukriya

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  3. इस प्रस्तुति के लिए आभार!

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  4. अत्यंत ओजस्वी एवं जोश से भरपूर रचना ! कई दिनों के बाद गोपाल सिंह नेपाली जी की यह रचना पढ़ कर मन मुग्ध हो गया ! यह रचना मुझे बहुत पसंद है ! आभार आपका इसे पुन: पढने का अवसर प्रदान किया !

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  5. उत्साह का संचार करती पंक्तियाँ। बहुत ही अच्छी।

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  6. Nav nirmaan kaa sandesh detee yah rachana,behad zabardast hai!

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  7. जंजीर टूटती कभी न अश्रुधार से,
    दुख-दर्द दूर भागते नहीं दुलार से,
    हटती न दासता पुकार से, गुहार से,
    इस गंग-तीर बैठ आज राष्ट्र शक्ति की --
    तुम कामना करो, किशोर, कामना करो

    waah kya kaha hai

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  8. जंजीर टूटती कभी न अश्रुधार से,
    दुख-दर्द दूर भागते नहीं दुलार से,
    हटती न दासता पुकार से, गुहार से,
    इस गंग-तीर बैठ आज राष्ट्र शक्ति की --
    तुम कामना करो, किशोर, कामना करो !

    ...बहुत ओजमयी और प्रेरक प्रस्तुति...नस नस में ऊर्जा भर देती है...बधाई !

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  9. Aaj paristhitiyan bhale badal gai hon,par ab bhi Yuva-shakti hi sahaara hai.Afsos,ki aaj ki veer-ras wali kavitayen Pakistan par hi jaakar khatm ho jati hain.Ye kavita kuchh shashvat moolyon ko liye hai,isliye aaj bhi praasangik hai.

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