युग का करने निर्माण जवानी जागा करती है !
करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !
सुख-वैभव के सपनों में जब जग सोता रहता है,
पापों की गठरी को मानव जब ढोता रहता है !
अरमानों को पूरा करने की खातिर जब मानव,
पथ में विपदाओं के कांटे-से बोता रहता है ;
तब करने को कल्याण, जवानी जागा करती है !
करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !
जब धरती की मानवता का इतिहास बदलता है,
मानव के उर का चिर संचित विश्वास बदलता है !
जब एक-एक इंसान बदल जाता है धरती का,
जब ब्रहमचर्य भी लेकर के संन्यास बदलता है !
तब करने को उत्थान, जवानी जागा करती है !
करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !
जब परिवर्तन हो जाता है, संसारी जीवन का,
जब परिवर्तन हो जाता है, मानव के तन-मन का !
जब विकट रूप में, जीवन की यह स्वांसा चलती है,
जब परिवर्तन हो जाता है जग के इस उपवन का !
तब बन करके वरदान, जवानी जागा करती है !
करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !
करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !
जब कंस और रावण से अत्याचारी होते हैं,
दुर्योधन, दुशासन जैसे व्याभिचारी होते हैं !
अन्यायों से उत्पीडित जनता जब चिल्लाती है,
शिशुपाल सरीखे उच्छ्रंखल अधिकारी होते हैं !
तब बन करके भगवान्, जवानी जागा करती है !करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !
जब गजनी के आक्रमणों का आतंक समाया हो,
जब सोमनाथ के मंदिर ने सम्मान लुटाया हो !
जब दुष्ट मुहम्मद गौरी से जयचंद मिलें जाकर,
जब चिता जलाकर सतियों ने शमशान रचाया हो !
तब बन करके चौहान, जवानी जागा करती है !
करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !
कृष्ण मित्र
करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !
कृष्ण मित्र
बड़ी ही प्रेरक पंक्तियाँ।
ReplyDeleteबहुत ही ओजपूर्ण एवं जागृत करती रचना ! आज के हालात में सोई जवानी को ऐसे ही आह्वान की आवश्यकता है ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत ही ओजपूर्ण रचना को पढ़कर एक नई ऊर्जा का अहसास हो रहा है।
ReplyDeleteजब कंस और रावण से अत्याचारी होते हैं,
ReplyDeleteदुर्योधन, दुशासन जैसे व्याभिचारी होते हैं !
अन्यायों से उत्पीडित जनता जब चिल्लाती है,
शिशुपाल सरीखे उच्छ्रंखल अधिकारी होते हैं !
तब बन करके भगवान्, जवानी जागा करती है !
करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !
nischay hi yun aag kee lapten uthti hain ...
बलिदान का जोश जगातीं प्रेरक पंक्तियाँ!
ReplyDeleteजब धरती की मानवता का इतिहास बदलता है,
ReplyDeleteमानव के उर का चिर संचित विश्वास बदलता है !
जब एक-एक इंसान बदल जाता है धरती का,
जब ब्रहमचर्य भी लेकर के संन्यास बदलता है !
तब करने को उत्थान, जवानी जागा करती है !
करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !
Ye panktiyan to bahut hee bha gayeen!
प्रेरक!
ReplyDeleteसशक्त और प्रभावशाली रचना.....
ReplyDeleteबहुत जोशीली रचना कुछ पन्तिया बहुत अच्छी लगी,..बधाई
ReplyDeleteमेरे पोस्ट में पढ़े......
आज चली कुछ ऐसी बातें, बातों पर हो जाएँ बातें
ममता मयी हैं माँ की बातें, शिक्षा देती गुरु की बातें
अच्छी और बुरी कुछ बातें, है गंभीर बहुत सी बातें
कभी कभी भरमाती बातें, है इतिहास बनाती बातें
युगों युगों तक चलती बातें, कुछ होतीं हैं ऎसी बातें
बड़ी ही प्रेरक पंक्तियाँ।...
ReplyDeleteअफसोस,कि कई बलिदानियों को उनके त्याग का सिला नहीं दिया हमने!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है ।
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