बहुत नमन कर चुके गगन को, भू को करो प्रणाम !
भाइयो, भू को करो प्रणाम !
नभ में बैठे हुए देवता पूजा ही लेते हैं,
बदले में निष्क्रिय मानव को भाग्यवाद देते हैं !
निर्भर करना छोड़ नियति पर,श्रम को करो सलाम!
साथियो, भू को करो प्रणाम !
देवालय यह भूमि कि जिसका कण-कण चन्दन सा है,
शस्य-श्यामला वसुधा, जिसका पग-पग नंदन सा है !
श्रम-सीकर बरसाओ इस पर, देगी सुफल ललाम ,
बंधुओ, देगी सुफल ललाम !
जोतो, बोलो, सींचो, मेहनत करके इसे निराओ ,
ईति, भीती, दैवी विपदा , रोगों से इसे बचाओ !
अन्य देवता छोड़ धरा को ही पूजो निशि-याम,
किसानो, पूजो आठों याम !
जगदीश बाजपेयी
kyonki yah dharti deti hai jivan ... bahut badhiya
ReplyDeleteघरती सबका पेट भरे है..
ReplyDeleteबेहतरीन अभिवयक्ति....
ReplyDeleteprabhaavshali rachna....
ReplyDeleteएक से एक रोचक कविता इस ब्लोग पर पढ़ने को मिलती है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteदेवालय यह भूमि कि जिसका कण-कण चन्दन सा है,
ReplyDeleteशस्य-श्यामला वसुधा, जिसका पग-पग नंदन सा है !
श्रम-सीकर बरसाओ इस पर, देगी सुफल ललाम ,
बंधुओ, देगी सुफल ललाम !
बहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद। ।
bilkul saty dhara hai to ham hai
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
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