Tuesday, 14 February 2012

कर चले हम फ़िदा जान-तन साथियो ...

साथियो बहुत दिनों से ये गीत होंठों पर था...सोचा इसी गीत को आपके समक्ष पेश करू..जानती हूँ आप सब के होंठो पर भी इस गीत के बोल मचलते होंगे....फिर भी बस एक बार फिर से गुनगुना ले...





कर चले हम फ़िदा जान-तन साथियो 
अब   तुम्हारे  हवाले  वतन  साथियो


सांस  थमती गयी, नब्ज़ जमती गयी,
फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया.
कट गए सिर हमारे तो  कुछ गम नहीं,
सिर हिमालय का हमने न झुकने दिया 
मरते   मरते   रहा  बांकपन  साथियो.


जिन्दा रहने  के मौसम  बहुत हैं मगर
जान  देने  की  रुत  रोज  आती  नहीं
हुस्न  और  इश्क  दोनों को रुसवा करें 
वह  जवानी  जो खूँ   में  नहाती  नहीं.
आज  धरती  बनी है दुल्हन साथियो


राह   कुर्बानियों  की   न  वीरान  हो 
तुम  सजाते  हो रहना  नए काफिले 
जीत का  जश्न  इस  जश्न  के बाद है,
जिन्दगी मौत  से  मिल  रही है गले,
बाँध लो अपने सिर से कफ़न साथियो !


खींच  दो अपने खूँ से जमीं पर लकीर
इस  तरफ आने  पाए  न रावण कोई
तोड़   दो  हाथ  गर  हाथ  उठने  लगे,
छूने  पाए  न  सीता  का  दामन कोई
राम भी तुम, तुम्ही लक्ष्मण साथियो !

कैफ़ी आज़मी 



Monday, 16 January 2012

मैं सैनिक बन जाऊँगा !

 




                                   मैं सैनिक बन जाऊँगा !

सेनानी  वर्दी  पहनूंगा,  बूट  करेंगे  ठक-ठक-ठक !
कंधे  से  बन्दूक  लगेगी,  मुन्नी  देखेगी इक टक !
                                   मैं सैनिक बन जाऊँगा !

चुन्नू-मुन्नू  तुम  भी  आओ,  सेना  एक  सजायेंगे !
हिंद  देश  के  प्रहरी  हैं हम, सीमा  पर डट  जायेंगे !
तुम रिपु-दल की थाह लगाना, मैं बन्दूक चलाऊंगा !
                                     मैं सैनिक बन जाऊँगा !

मुन्नी हमको तिलक करो तुम, आज जा रहे हम रण में !
दुश्मन  को  पीछे  पटका  दें,  यही  लालसा  है  मन  में !
तन-मन  का  मैं  अर्ध्य चढ़ा कर, माँ का मान बढ़ाऊंगा !
                                           मैं सैनिक बन जाऊँगा !


हिम-मंडित यह शुभ्र हिमालय, ऊँचा भाल हमारा है !
नींच शत्रु ने मलिन आँख से, इसको आज निहारा है !
अरि-मर्दन कर उसी रक्त से, माँ को तिलक चढाऊंगा!
                                          मैं सैनिक बन जाऊँगा !

                                             सत्यवती शर्मा 
     

Tuesday, 3 January 2012

मैं उनके गीत गाता हूँ...




मैं उनके गीत गाता हूँ, मैं उनके गीत गाता हूँ !


जो शाने पर बगावत का अलम लेकर निकलते हैं,
किसी जालिम हुकूमत के धड़कते दिल पे चलते हैं,
मैं   उनके गीत  गाता हूँ,  मैं  उनके  गीत गाता हूँ !


जो  रख  देते  हैं  सीना  गर्म  तोपों  के  दहानों  पर,
नज़र से जिनकी बिजली कौंधती है आसमानों पर,
मैं  उनके  गीत  गाता  हूँ,  मैं  उनके गीत गाता हूँ !


जो  आज़ादी  की  देवी  को  लहू  की  भेंट  देते  हैं,
सदाकत*  के  लिए  जो  हाथ  में तलवार लेते  हैं,
मैं  उनके  गीत  गाता हूँ,  मैं उनके गीत गाता हूँ !


जो  परदे  चाक  करते हैं हुकूमत की सियासत के,
जो दुश्मन हैं कदामत** के,जो हामी हैं बगावत के,
मैं  उनके  गीत  गाता  हूँ,  मैं उनके गीत गाता हूँ !


कुचल सकते हैं  जो मजदूर जर के आस्तानों को,
जो  जलकर आग  दे देते  हैं  जंगी  कारखानों को,
मैं  उनके  गीत  गाता  हूँ,  मैं उनके गीत गाता हूँ !


झुलस सकते हैं जो शोलों से, कुफ्रों-दीं की बस्ती को,
जो लानत जानते हैं मुल्क में, फिरका-परस्ती को,
मैं  उनके  गीत  गाता हूँ,  मैं  उनके गीत गाता हूँ !


वतन  के  नौजवानों  में  नए  जज्बे  जगाऊंगा,
मैं  उनके  गीत गाऊंगा,  मैं उनके गीत गाऊंगा,
मैं  उनके गीत गाऊंगा,  मैं उनके गीत गाऊंगा !


* सत्य  ** प्राचीनता 


                                        जांनिसार अख्तर 

Sunday, 25 December 2011

भारत से टकराने वाला मिटटी में मिल जाएगा..




हम  सबको  रक्षा करनी है,  लड़ते  हुए जवानों की;
और हमें रखवाली करनी, अन्न भरे खलिहानों की ;

तभी  योजनाओं  का  रथ,  आगे आगे  बढ़  पायेगा !
तभी मुक्ति-अभिमन्यु हमारा, विजयकेतु फहराएगा !

भूखे  हाथों  से  मशीन  का  पहिया नहीं चला करता ;
भूखे-प्यासे  हाथों  में हल,  बार-बार  उछला  करता ;

भूखे सैनिक के स्वर से, कब अरि का उर दहला करता !
भूखे  देशों  का  अम्बर  में  केतु  नहीं  मचला  करता !

हमको फसल  नहीं कटवानी,  सरहद  पर  इंसानों  की,
रक्त-वृष्टि   से  हमें  सृष्टि  सुलगानी  है  शैतानों  की  __

तभी  हमारी  सत्यकथा  को  सारा  जग  पढ़ पायेगा !
देश   हमारा  गौरव   के   सोपानों   पर  चढ़  पायेगा !

संगीनों  की  नोक,  कथाएं  कब लिखती अनुराग की ;
हिम शिखरों पर चला बहाने को अरि सरिता आग की ;

हम  पद्मिनियों  के बेटे  हैं,  आदत रण  के फाग  की !
अपनी धरती  पर उगती  है फसल हमेशा त्याग  की !

कफ़न बाँध हम घर से निकले, होड़ लगी बलिदानों की;
जन्मभूमि  हित  तन, मन, धन देने वाले दीवानों की ;

देखें कौन  खोलकर सीना,  भारत  से  भिड़  पायेगा !
हिमगिरी से टकराने वाला मिटटी  में मिल जाएगा !!

                       सरस्वतीकुमार  'दीपक'

india independence day art picture

Tuesday, 13 December 2011

नवीन कल्पना करो






तुम  कल्पना  करो, नवीन  कल्पना करो !
                                तुम  कल्पना  करो !


अब घिस गयी समाज की तमाम नीतियां,
अब घिस गयी मनुष्य  की अतीत रीतियाँ,
है   दे   रहीं   चुनौतियाँ   तुम्हें    कुरीतियाँ,
निज  राष्ट्र  के  शरीर  के  सिंगार  के  लिए --

तुम  कल्पना  करो, नवीन  कल्पना करो !
                                तुम  कल्पना  करो !

जंजीर   टूटती    कभी    न    अश्रुधार   से,
दुख-दर्द    दूर    भागते    नहीं   दुलार   से,
हटती   न   दासता   पुकार   से,  गुहार  से,
इस  गंग-तीर   बैठ  आज  राष्ट्र  शक्ति  की --
तुम  कामना करो, किशोर, कामना करो !
                                  तुम कामना करो !

जो तुम  गए, स्वदेश  की जवानियाँ  गयी,
चित्तौड़   के  प्रताप   की   कहानियां  गयी,
आज़ाद   देश   रक्त  की   रवानियाँ   गयी,
अब सूर्य-चन्द्र की समृद्धि ऋषि-सिद्धि की --
तुम   याचना  करो,  दरिद्र,  याचना करो !
                                  तुम याचना करो !

जिसकी तरंग लोल हैं अशांत सिन्धु वह,
जो  काटता  घटा  प्रगाड़  वक्र !  इंदु  वह,
जो  मापता  समग्र  सृष्टि  दृष्टि-बिंदु  वह,
वह  है मनुष्य,  जो स्वदेश की व्यथा हरे,
तुम  यातना  हरो,  मनुष्य, यातना हरो !
                                 तुम यातना हरो !

तुम  प्रार्थना किये चले, नहीं दिशा हिली,
तुम साधना किये चले, नहीं निशा हिली,
इस  आर्त  दीन  देश  की न दुर्दशा हिली,
अब  अश्रु दान  छोड़  आज शीश दान से --
तुम  अर्चना करो, अमोध, अर्चना करो !
                                तुम अर्चना करो !

आकाश  है  स्वतंत्र,  है  स्वतंत्र  मेखला,
यह  श्रृंग  भी  स्वतंत्र ही खड़ा बना ढला,
है  जल  प्रपात   काटता  सदैव  श्रृंखला,
आनंद, शोक, जन्म और मृत्यु के लिए --
तुम योजना करो, स्वतंत्र योजना करो !
                               तुम योजना करो !


                             गोपाल सिंह नेपाली 


Wednesday, 7 December 2011

जवानी जागा करती है

  


               युग  का  करने  निर्माण जवानी जागा करती है !
               करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !


सुख-वैभव के सपनों में जब जग सोता रहता है,
पापों  की  गठरी को  मानव जब ढोता रहता है !
अरमानों को पूरा करने  की खातिर जब मानव,
पथ  में  विपदाओं  के  कांटे-से  बोता  रहता  है ;
                तब  करने  को कल्याण, जवानी जागा करती है !
                करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !


जब धरती की मानवता का इतिहास बदलता है,
मानव के उर का चिर संचित विश्वास बदलता है !
जब  एक-एक  इंसान  बदल  जाता  है धरती का,
जब  ब्रहमचर्य  भी  लेकर के संन्यास बदलता है !

                तब करने  को  उत्थान,  जवानी जागा करती है !
                करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !

जब  परिवर्तन  हो  जाता  है,  संसारी  जीवन  का,
जब परिवर्तन हो जाता है, मानव के तन-मन का !
जब विकट रूप में, जीवन की यह स्वांसा चलती है,
जब  परिवर्तन हो जाता है जग के इस उपवन का !
               तब  बन  करके वरदान, जवानी जागा करती है !
               करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !

जब  कंस  और  रावण  से  अत्याचारी होते हैं,
दुर्योधन,  दुशासन  जैसे  व्याभिचारी  होते हैं !
अन्यायों से उत्पीडित जनता जब चिल्लाती है,
शिशुपाल सरीखे उच्छ्रंखल अधिकारी होते हैं !
               तब बन करके भगवान्,  जवानी जागा करती है !
               करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !
 
जब गजनी के आक्रमणों का आतंक समाया हो,
जब  सोमनाथ  के मंदिर ने सम्मान लुटाया हो !
जब  दुष्ट  मुहम्मद गौरी से जयचंद मिलें जाकर,
जब चिता जलाकर सतियों ने शमशान रचाया हो !
              तब  बन  करके चौहान,  जवानी जागा करती है !
              करने को नित बलिदान, जवानी जागा करती है !

                                                                         कृष्ण मित्र 


Tuesday, 29 November 2011

भू को करो प्रणाम




बहुत नमन कर चुके गगन को, भू को करो प्रणाम !
                                  भाइयो, भू को करो प्रणाम !


नभ    में   बैठे    हुए    देवता    पूजा   ही   लेते   हैं,
बदले  में  निष्क्रिय  मानव  को  भाग्यवाद  देते हैं !
निर्भर करना छोड़ नियति पर,श्रम को करो सलाम!
                               साथियो, भू को करो प्रणाम !


देवालय यह भूमि कि जिसका  कण-कण चन्दन सा है,
शस्य-श्यामला वसुधा,  जिसका  पग-पग नंदन सा है !
श्रम-सीकर  बरसाओ   इस  पर,  देगी  सुफल  ललाम ,
                                       बंधुओ, देगी सुफल ललाम !


जोतो,  बोलो,  सींचो,  मेहनत  करके  इसे  निराओ ,
ईति,  भीती,  दैवी  विपदा , रोगों   से  इसे  बचाओ !
अन्य  देवता  छोड़  धरा  को  ही  पूजो  निशि-याम,
                                      किसानो, पूजो आठों याम !

                              जगदीश बाजपेयी